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सिरि भूवलय
सर्वभाषामयी भाषा प्रवृता यन्मुखांबुजात ( शब्दानुशासन ) ऐसा प्रवृत्तायन्मुखाद्देवी सर्वभाषा सरस्वती (भाषाभूषण) ऐसा छंदोबुधि में
संस्कृतं प्राकृतमपभ्रंश पैशाचिकमेंब मूरुवरे भाषेगळोळ पुट्टुव द्रविडांध्र कर्णाटादि षट्पंचाशत्सर्वविषयभाषाजातिगळक्कं
अर्थात संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश आदि तीन भाषाओं से द्रविड आंध्रा कर्नाटक आदि तीन भाषाओं का जन्म हुआ है।
इस प्रकार कहे जाने के कारण कर्नाटक भाषा जन भाषा है। प्रायः जैन बौद्धों को अर्धमागधी (अथवा पालि) मूलभाषा, महावीर गौतम बुद्ध की वाणी होने के कारण जग के लिए मूलभाषा, सर्वभाषामयी भाषा ।
कुमुदेन्दु के कहेनुसार प्राक्रुत संस्कृत मागध पिशाच भाषा शौरसेनी अथवा कर्णाट मागध मालव लाट गौड गुर्जर आदि ६, तीन प्रकार के १८ भाषाएँ अष्टदश महाभाषाएँ हो सकती हैं। इस प्राक्रुत के विषय में भरत का नाट्य शास्त्र मागध्यवन्तिजा प्राच्या शूरसेन्यर्धमागधी। वाह्लीका दाक्षिणात्या च सप्तभाषाः प्रकीर्तिताः इस प्रकार सातों को दंडि के काव्यादर्श में महाराष्ट्र शौरसेनी गौडी लाटी आदि को उल्लेखित किया गया है। कुमुदेन्दु के अभिप्रायानुसार मूलभाषा कर्माट, कन्नड ।
सकलवु कर्माटदणुरूप होन्दुत । प्रकटदे ओन्दरोळडगि।।
हदिनेन्टु भाषेयु महाभाषेयागलु । बरिय भाषेगळेळुनूरं ।। (अ . ६-३, ४)
सभी भाषाएँ एक में एक समाहित होकर कर्नाटक का अणुरूप बन १८ महाभाषा और ७०० अन्य भाषाएँ हैं ।
आदि तीर्थंकर के द्वारा सौनदरी को उपदेशित अंकाक्षर पद्धति की भाषा कन्नड थी । नागवर्म को भी (सन् १०४०) यह ज्ञात नहीं था ऐसा अनुमान लगाया जाना चाहिए। कुमुदेन्दु के कहेनुसार भाषाओं को लिपियों को अन्य जैनग्रंथों में कहेनुसार विर्मशन करना चाहिए। बौद्धों के ललित विस्तर में ६४ लिपियों का उल्लेख है। जैनों के पन्नवन्न के चारों ओर समवायांग घुमावों में कल्पांतरवाक्यानि निम्न लिखित १८ लिपियाँ उक्त हुई हैं।
भम्भी, जवणालि, दोसापुरया, खरोष्टि पुक्करसारी (दि), भोगवति, पहाराय, उयांतरिक्ख, अक्करपिट्ठि, तेवणइ, राहति, अंकलिपि, गळित (गणित) लिवि, गन्धव्वलिवि, आंधसलिवि, माहेसरी, दामिली, पौलिन्दी |
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