________________
(सिरि भूवलय
भाषाओं की संख्यायों को सामान्यत सभी जैन ग्रंथों में १८ महाभाषा और ७०० क्षुल्लक (लघु) भाषा हैं ऐसा ही उल्लेखित किया गया है।
अटठारसविहपगारदेशीभासा विसाराऐ अट्ठारस देसीभाषा विसारया (ज्ञातृधर्मकथासूत्र) . अट्ठारस देसीभाषा विसाराऐ (औपपातिकसूत्र, विपाकसूत्र) अट्ठारस विहदेसि गारभासा विसाराऐ (राजप्रश्निय) कुमदेन्दु (अ.५) इस संस्कृत श्लोकों को उदाहरण देते हैं।
अथवा प्राकृत संस्कृत मागध पिशाच भाषाश्च शूरसेनी च षष्ठोत्र भेदो देशविशेषादपभ्रंशः अथवा कर्णाटमागधमालवलाटगौडगुर्जरप्रत्येकत्रय मित्य दिशमभाषा। रुद्रट के काव्यालंकार में उपरोक्त लिखे गए श्लोक में से प्रथम श्लोक इस प्रकार
dic
प्राकृत संस्कृत मागध पिशाच भाषाश्च शौरसेनी च षष्ठोत्र भूरिभेदः देशविशेषादपभ्रंशः।। इसे ग्यारहवीं सदी में नमिसाधु व्याख्यान करते समय इस प्रकार कहते हैं आरिसगयणे सिद्धं देनाणां अद्धमगहा वाणी इत्यादि नचनात प्राक पूर्व कृतं प्राकृतं बालमहि ळादि सुबोध सकलभाषानिबंधन भूतं वचनमुच्यते मेघनिमुक्त जलमिनै कस्नरूपं तदेव च देशनि तेषात्संस्कारकरणाच्च समसादित विशेषं सत संस्कृताधुत्तरविभेदाना प्नोति अतऐन शास्त्रकृता प्राकृतमादौ निर्दि म तदनु संस्कृतादीनि पाणिन्यादि व्याकरणोदित शब्दलक्षणेन संस्करणात संस्कृतमुच्चयते तथा प्राकृतमेव किंचिद्विशेषात पैशाचिकम
अर्थात बादलों से मुक्त रूप से जल छलकने की भाति अर्धमागधी प्राकृत पैशाची भाषाएँ इस देश में छलकीं हैं पाणिनि आदि ने व्याकरण रच कर शब्दलक्षणों को समझा कर संस्करित किया है यह भाषा ही संस्कृत है ।
456