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सिरि भूवलय
वेदों के लिए तीन अर्थ, भारत के लिए दस अर्थ विष्णु सहस्र नाम के लिए सौ अर्थ हैं ऐसा प्राचीन प्रवाद (किंवदंति, जनश्रुति) है। संस्कृतवाङ्मय में सभंग, अभंग, श्लेषभेद के द्वारा नानार्थक नळचंपु, हर्षचरिते, कादंबरी, वासवदत्ता, रुकमणिविजय, आदि अनेक काव्य उपलब्ध हैं। तीन-चार अर्थों वाले अनेक श्लोकों को तीर्थप्रबंध, रुक्मणीशविजय, माघ काव्यों में भी देखा जा सकता है। नैषध काव्य का पंचनळी नाम से प्रख्यात तेरहवें सर्ग में पाँच अर्थों से भरित श्लोक भी उपलब्ध होते हैं। उन एकएक पद के लिए विविधार्थ व्यक्त करने के भाँति रचे गए हैं। परन्तु एक ग्रंथ, भिन्न- भिन्न क्रमानुसार अलग अलग रीति से पढे तो अनेक भाषात्मक रूप से अलग-अलग अर्थ का बोध कराते हैं ऐसा हमने कभी सुना ही नहीं है तो फिर देखने का सवाल ही उत्पन्न नहीं होता किन्तु हमारी भारत भूमाता लोकोत्तर प्रभाव से भरित महामेधावी, बहुज्ञान शक्ति बुद्धि शक्ति से परिपूर्ण, उस आश्चर्यकर उत्तम पुरुष रत्न को जन्म दिया होगा ! अभी उस प्रकार का आज तक अदृष्ट श्रुतपूर्वक विस्मय को प्रमोद (आनंद) का अनुभव कराने वाला ग्रंथ रत्न, भारत देश में प्राप्त होने का समाचार सुन कर हर भारतीय संतोष का अनुभव करेगा !
मैसूर नगर वासी पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी दिल्ली नगर के कर्नाटक संघ में इस अद्भुत ताळ पत्र (पत्र, लिखित काव्य ) ग्रंथ को दिखाया, वह ग्रंथ लगभग ९०० वर्ष पूर्व ही जैन विद्वान द्वारा लिखित, उसमें भारतीय कला, नागरिकता, वैद्य, गणित, आदि विविध विषय हैं, यह ग्रंथ सप्तशत भाषाओं के द्वारा पढा जा सकता है, बाँयीं तरफ़ से पढ़ा जाए तो कर्नाटक भाषा की कविता बनेगी, प्रतिपक्ति के प्रथम अक्षर को पढे तो प्राकृत भाषा की कविता, मध्याक्षरों को ही मिलाकर पढा जाए तो संस्कृत श्लोकों को स्पष्ट रूप से पढा जा सकता है, ऐसा उल्लेखित है, ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है । आहा ! इस ग्रंथ कर्त्ता का वैदुष्य (विद्वत) कितना अगाध और अपूर्व होगा क्या कहें ? ग्रंथ निर्माण शैली अनुपम ! आश्चर्य! सैकडों भाषाओं को जान कर उनके अभिप्राय को श्लोक रूप में काव्य रीति में ग्रंथ को रच कर अलग-अलग भाषाओं में उस एक ही ग्रंथ को, श्लोक को, पँक्ति को पढने की रीति में रचना करना, रचनाकार कवि की प्रतिभा प्रभाव अत्यंत श्रेष्ठ ही होगी
न ?
इस अपूर्व अद्भुत ग्रंथ को श्रीमान यल्लप्पा शास्त्री जी महाशय जितना हो सके उतनी क्षिप्रता (शीघ्रता) से प्रकाश में लाकर प्रचार कर भारत की कीर्ति को अधिक से अधिक प्रकाशित करें ऐसी आशा करता हूँ । सर्व भाषाभिमानी, श्रीमंत (धनी) और बुद्धिमान
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