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सिरि भूवलय
स्तर दिव्य ध्वनि में रहने वाले अंक केवल इतने ही हैं । इतने में ही समस्त को समाहित कर सकते हैं अथवा कोई महामेधावी बालक जन्म लेकर केवल साढे आठ वर्ष की आयु में इन सभी को अक्षर रूप में परिवर्तित कर दिव्य ध्वनि के प्रत्यक्ष रूप को कुमुदेन्दु की भाँति ही देख कर जग का उद्धार करें ऐसी महान आशा के साथ संघ के सदस्यों ने एक वर्ष तक अविश्रांतश्रम का वहन किया है। यह जग के लिए उपयोगी सिद्ध हो तो, हम धन्य होंगें।
पंडित माडि चीमनहळ्ळि रघुनाथचार्य
__ अ) हमारे इस संक्षिप्त परिचयात्मक लेखन में जितना हो सके उतना जनता को समझाने का प्रयत्न किया जा चुका है । इस ग्रंथ का अभ्यास करते जाए तो सभी प्रकार की जनता को अर्थात कवियों को, मुनियों को, ज्ञानियों को, तथा अनेक कलाविद्याभ्यासियों को अत्यंत गहन, गहरा, गंभीर, अपूर्व तथा काल चक्र में न हुए सभी विद्याओं के संपूर्ण विचार, संपूर्ण ऋगवेद, आयुर्वेद, ज्योतिष्य, आदि सभी इस ग्रंथ के द्वारा लभ्य हैं, ऐसा जान सकते हैं।
वेदों के लिए तीन अर्थ, भारत के लिए दस अर्थ, विष्णु सहस्रनाम के लिए सौ अर्थ हैं यह प्राचीन है। इस प्रकार यह सभी आज की दुनिया में अनजान कारणों से अपूर्ण,
अस्प तथा काल गर्भ में लुप्तप्राय से होकर इनको पहचानने या फिर कहने वाले न के बराबर हो गए हैं ऐसे में सिरि भूवलय ग्रंथ को संशोधित कर कन्नड की जनता के सम्मुख रखने वाले दिवंगत पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी का आमरणांत अविश्रांत परिश्रम श्लाघनीय
और अभिनंदित है। और सर्वार्थ सिद्धि संघ के सदस्यों के द्वारा हाथ में लिया गया कार्य सफल हो तथा श्री के. अनंतसुब्बाराव जी का नेतृत्व श्लाघनीय है।
आ) अत्यद्भुत सप्तशत (७००) भाषामय ग्रंथ
त्रयोर्थाः सर्ववेदेषु दशार्धाः सर्वभारते। विष्णोः सहस्रनामापि निरंतर शतार्थक।।
अर्थात सर्वभाषामय यह ग्रंथ, सर्व वेद तथा सर्व भारत के सार को समाहित किए हुए विष्णु सहस्र नाम के भाँति निरंतर भावों से भरित है।
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