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सिरि भूवलय
किया। उस एक कमी को कुमुदेन्दु गुरु ने दूर किया । दिव्य ध्वनि सत्य है, यह भगवन के सर्वांग से, शंखनाद, समुद्र घोष, बादल गरजने बिजली चमकने की ध्वनि, आदि ध्वनि के भाँति निरिच्छापूर्वक सुनने वालों की अपेक्षा को पूर्ण करने के रूप में गूंजित होती है। तीनों लोक तथा तीनों काल समय के लिए समस्त को केवल अंतर्मूहूर्त अर्थात केवल सैंतालिस (४७) मिनटों में कहा गया है। इतने विशाल विषय को इतने कम समय में किस प्रकार कहना संभव है? ऐसा एक प्रश्न उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न का कुमुदेन्दु मुनि इस प्रकार उत्तर देते हैं कि आ इ उ और ए, की मात्राओं का संयोग किए बिना ही केवल एक अंक में एक और अंक को मिलाने के कारण ही अर्थात चौंसठ (६४) अक्षरों को नौ (९) अंकों से घुमाने के कारण ही ऐसा संभव हुआ है ऐसा अपने साथ १५०० दिगबंर विद्वान मुनियों को मार्ग में चलते-चलते उपदेशित करते थे। उदाहरण स्वरूप ५४x५४x३१/२ + १६२ = १०३६८ इतना कहने के साथ ही एक शिष्य ने, अभी मुद्रित किए गए संस्कृत भाषा के दिगबंर जैन संप्रदाय के निर्वाण कांड के साथ भगवद गीता में अक्षरों को परिवर्तित कर उन अक्षरों को अंकों से पहचान कर चक्रों में भर कर १६२ श्लोकों को गुरु के सम्मुख प्रस्तुत किया । इसी प्रकार एक और मुनि ने कुमुदेन्दु मुनि को १६२x६४ = १०३६८को दिया । इसे उन्होंनें पृथक कर दस (१०) मंडलों में, प्रथम मंडल में आठ में एक भाग का १०३६८ ऋगवेद के सूत्रों को निकाल, चक्रों में भर गुरु के सम्मुख प्रस्तुत किया । इसी प्रकार अलग-अलग अकों को मिलाने के फलस्वरूप १५०० शिष्य मुनियों ने गंधहस्तिमहाभाष्य, तत्वार्थसूत्र, ऐसे ही चौदह (१४) पूर्वों को बारह (१२) अंगों को सभी को अलग-अलग पृथक कर चक्रों में भर गुरु को अर्पित किया। इस प्रकार अपने शिष्यों से प्राप्त अंकों के समस्त वेदसाहित्य को विज्ञान तथा गणित में समाहित कर, ऊपर कहेनुसार एक अंतर्मूहूर्त में एक साथ एक ही समय में मिलाकर आज मुद्रित एक ही चक्र में अर्थात सात सौ उन्नतीस (७२९) खानों में भरा। इसे कैसे भरा होगा? वह गणित कौन सा है ? हम स्पष्ट रूप से न भी व्यक्त कर सकें तो भी हमने चौंसठ (६४) अक्षरों को उतने ही बार संयोग भंग करने के कारण बियानबे (९२) पृथक अंक का मिलना सही है या नहीं इसे तुलना कर लगभग एक वर्ष तक ६४ पृष्ठों को लिख कर तैयार किया है।
यह अनेक अंकों के साथ एक चित्र कला के रूप में प्रतीत होता है। बारह (१२) अंग वेद, चौदह (१४) पूर्व, ऋगवेदादि समस्त सभी वेद के साथ समस्त विषयों को हम अल्पज्ञ समझने में समर्थ न भी हों तो, उन सभी को जड सहित पकड कर आखिरी
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