________________
सिरि भूवलय
जन, इस पंडित तथा इस ग्रंथ के विषय को जान कर इस अन्यादृश्य(असाधरण) काव्य को प्रकाश में लाएँ यह उनका आद्य (प्रथम) कर्त्तव्य है । इ) सिरि भूवलय (श्री कुमुदेन्दु गुरु विरचित)
श्री वीरसेनाचार्यवर्योपदि श्री कुमुदेन्दु विरचित सर्वभाषामयी काव्य, यह कवि लगभग सन् ८०० में रहे, इसे अंकों में गणित पद्धति में गणन-गुणन कर अंकों में ही लिखा, इस अंक जाल को अक्षर बनाकर प्राप्त अक्षरों से ७१८ भाषाएँ, ३६३ मत, ६४ कलाएँ, ९ अंकों का समन्वय किया है ऐसा विवरण किया गया है। यह विश्व का दसवाँ आश्चर्य है ऐसा विश्व के वृत्तपत्रों, तथा कलाकारों का मत है। ७१८ भाषाओं को कन्नडकाव्य में समाहित करने के लिए कवि कुछ बंधो का प्रयोग करते हैं । चक्रबंध, हंसबंध, पद्मशुद्ध, नवमांक बंध, परपद्म, महापद्म, द्वीप, सागर, पल्या, अंबु बंध, कामन पदपद्म, नख, चक्र, सीमातीत, लेक्क(गणीत) बंध, आदि से इस काव्य को बाँधा गया है, श्रेणी बंध में बंधे कन्नड काव्य के प्रथम अक्षर को ऊपर से नीचे की ओर पढे तो प्राकृत काव्य की उत्पत्ति होती है। मध्याक्षर अर्थात २७वें अक्षर में संस्कृत काव्य की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार बंधों को अलग-अलग रीतियों में देखते जाए तो विविध बंधों में बहुविध भाषाओं की उत्पत्ति होगी ऐसा कवि कथन को सम्पादक श्रीमान शास्त्रीजी साहस व धैर्य से, भूगर्भ में खानों में पत्थरों के बीच दबे-छिपे आश्म(पत्थर) सत्व कहे जाने वाले स्वर्ण को भेदित-शोधित कर शुद्ध कर उत्तम स्वर्ण को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करने की भाँति आसक्त साहित्यकारों के सम्मुख रख महोपकार किया है। भविष्य में आने वाले ग्रंथों में विशेष विवरणों को दिया जाएगा ऐसी आशा अति श्लाघनीय है ।
महाकवि कुमुदेन्दु के बाँधे गए कन्नड भूवलय में प्रयोग किए गए भाषाओं में प्राकृत, संस्कृत, द्रविड, आंध्र, महाराष्ट्र, मलेयाळ, गुर्जर, अंग, मंग, कलिंग, काश्मीर, कंभोज, हम्मीर, शूरसेनी, पाली, तेबति, वेंगि, ब्राह्मी, विजयार्ध, पद्म, वैदर्य, वैशाली, सौराष्ट्र, खरोष्ट्रि, निरोष्ट्रि, अपभ्रंश, पैशाचिक, रकाक्षर, अरि , अर्धमागधि, और अरस, पारस, सारस्वत, बारस, दश, मालव, लाट, गौड, मागध, विहार, उत्कल, कन्याकुब्ज, वराह, वैश्रमण, व्दांत, चित्रहर, यक्षि, राक्षसी, हंस, भूत, ऊहिया, यवनानि, तुर्कि, दमिळ, सैंधव, मालमणीय, कीरिय, देवनागरी, लाड, पारसी, अमित्रिक, चाणक्य, मूलदेवी, आदि विविध भाषा और लिपियों को नवमांक सरमग्गि (पहाडा, गुणन सूची) कोष्टक बंधनांक प्रकार में समाहित कर रखा है ऐसा संपादक ने अपने सविस्तार संपादकीय में उदाहरण सहित अच्छी तरह से प्रतिपादित कर
434