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सिरि भूवलय
वर्गीकरण को वर्गित संवर्गित के द्वारा गणन-गुणन समस्त वेदों में परिवर्तित करने की महिमा मयी विद्या को क्षयोपशम रखने वाले कोई भी सामान्य जीव आज भी प्राप्त कर सकता है। दिव्य ध्वनि में आने की भाँति ही समस्त शास्त्रों को सिरिभूवलय के चक्रों के अंकों से निकाल सकने के क्रम को विश्वविद्यालय के विद्वान भारत के ग्रामों से लेकर दिल्ली तक, ग्रामवासी से लेकर राष्ट्रपति तक, सत्य सिद्ध में सिरि कुमुदेन्दु मुनि विख्यात हुए हैं। इतना ही नहीं इस अभिनंदन ग्रंथ के सम्मान को प्राप्त करने वाले स्वस्ति श्री नेमि सागर वर्णिजयवर से लेकर आचार्य आदिसागर, आचार्य शांति सागर, आदि ने गुरु कुमुदेन्दु मुनि की, उनके काव्य सिरि भूवलय की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है । इतना ही नहीं आचार्य शांति सागर महाराज ने ताम्र पत्र पर लिखे प्रति की यथानुकूल मुद्रित एक हजार रूपयों की कीमत के बराबर श्री धवळ सिद्धांत, को सिरि भूवलय से मिलतेजुलते पाठ भेद का, समिति को जानकारी देने की आज्ञा देकर सर्वार्थ सिद्धि संघ को शास्त्र दान किया । स्वस्ति श्री नेमि सागर वर्णिजय होने पर भी, श्री अनंत सुब्बराव जी से विचार विमर्श कर सिरि भूवलय के विषय में जानकारी प्राप्त कर संघ के सदस्यों को आशीर्वाद दिया है ऐसा इसी ग्रंथ के एक और लेख में वर्णित है । उस समय में पूज्य दिवगंत श्री मंजय्या जी के द्वारा प्राप्त प्रोत्साहन आज भी अनंत सुब्बाराव जी के लिए अविस्मरणीय है।
गुरु वीरसेनाचार्य तथा उनके शिष्य गुरु कुमुदेन्द गुरु ।
__षट्टखंडागम का टीका श्री धवल सिद्धांत के व्याख्यानकार श्री वीरसेनाचार्य इस कुमुदेन्दु गुरु को दिव्यज्ञानी कह कर अंतिम प्रशस्ति में श्री कुमुदेन्दु मुनि के सहोद्योगी भगवज्जिन्सेनाचार्य जी ने अपने हरिवंश पुराण में इनके दिव्य ध्वनि को मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। इतना ही नहीं आज के श्री कुमुदेन्दु गुरु के रचित गीत अति मधुर है, जिसकी पंपा आदि महाकवियों ने भी प्रशंसा की है । परन्तु, बनवासी देश के अर्थात हमारी रीति के कन्नड सांगत्य, भगवन के दिव्य वाणि को अपने में समाहित करने की शक्ति रखते हैं इस कथन को पुराण कवियों ने व्यक्त किया है । स्वयं कुमुदेन्दु गुरु भी, पादरस(पारा) जडों के रस को खींचने (सोखने) के भाँति, कन्नड भाषा के सांगत्य, भगवन के दिव्य वाणि के ७१८ भाषाओं को एक साथ संग्रहित कर पकडने में अथवा अपने गर्भ में समाहित कर लेने की अर्हता रखते हैं, कहते हैं ।