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सिरि भूवलय
जन्म लेकर लोकोपकार में चित्त यह अनादिसिद्धांत उनके समय में ही इस हद तक अवहेलना झेल चुका था इस बात को स्मरण करें तो रोंगटे खडे हो जाते हैं। सिरि भूवलय गंग राज चक्रवर्ती प्रथम शिवमार के समय काल में श्री कुमुदेन्दु गुरु के द्वारा, नंदी दुर्ग में उस पार लिखे जा रहे समय, इस पार अर्थात सिंहन गुहुगे अथवा श्रृंगगिरि में के पास-पास एक महात्मा के तुषाग्नि प्रवेष जैसे घोर हिंसात्मक घटना का घटना हुण्डा सर्पिणि काल दोष के कारण ही, ऐसा समाधान आज हम कर भी लें तो भी उस कराल काल के धार्मिक विप्लव को कैसे भूल सकते हैं। इसी कारण महर्षियों ने कालाय तस्मै नमः कहा होगा। इसी समय श्री गुरु मंडन मिश्र के निवास स्थान के आगे पिजरें में पालित तोता वेदों का पाठ करता था। वह कैसे संभव है? पूछा जाय तो सिरिभूवलय के द्वारा संभव है । दिव्य ध्वनि केवल नौ अंकों में लिखी गई है अभी हाल ही में अर्थात श्रवण बेळगोळ में आयोजित क्रिस्ताब्द १९५३ के गोम्मटेश्वर स्वामी जी के दिव्य विग्रह के महामस्तकाभिषेक के समय एक प्रदर्शन कर्त्ता तोते लाया था जिसमें से कुछ तोते १ से लेकर ९९ तक के किसी भी अंक को संकेत से कहे तो जोड कर अथवा घटा कर मिलने वाले लब्धांक को चोंच से मारकर दिखाते थे। इस पद्धति को मंडन मिश्र जानते थे। सिरिभूवलय कहे तो भी नौ अंकों के द्वारा ही बांधा (रचा)गया है। मंडन मिश्र इस नवमांक गणित पद्धति के क्रम को गणन गुणन पद्धति से वेदों को अंकों में नवमांक पद्धति से बाँधने (रचित) को गुरु कुमदेन्दु से अथवा अंतहर ग्रंथ से सीखा होगा ऐसा हम सोच सकते हैं । इसी कारण से तुषाग्नि के प्रभाव से ग्रसित श्री भट्टपादाचार्य जी ने श्री शंकराचार्य जी को संदेह निवारण के लिए नवमांक ग्रंथ को जानने वाले अपने सहपाठी श्री मंडन मिश्र जी के घर भेजा होगा । इतना ही नहीं श्रवनबेळगोळ में पहुंचे तोते ५ या ६ अक्षरों के अंग्रेजी लिपि के शब्दों को जोड कर देते थे कहने के पश्चात महामेधावी श्री मंडन मिश्र जैसे शिक्षकों से शिक्षण प्राप्त वे तोते संपूर्ण अंक नौ से गणनगुणन कर ९९ तक पृथक अंक बना कर देने के योग्य न भी हो तो, केवल ऋककु के १०३६८ मंत्रों को गुणन-गणन कर कहने में क्या बाधा है । जैनागम में समस्त पशुपक्षी भी दिव्य ध्वनि के द्वारा प्रकटित संवादों को सुन कर समझ कर श्री भद्रबाहु चंद्र गुप्त की भाँति समाधि मरण रूप सल्लेखन (निर्जल उपवास द्वारा प्राण त्यागना )को प्राप्त कर आत्म कल्याण को प्राप्त हुए, ऐसे अनेकों उदाहरण हैं । गुरु कुमुदेन्दु मुनि ने तोते को सिरिभूवलय सिखाया ऐसे कथन के लिए अनेक वाक्य मिलें है गोम्मटेश्वर स्वामी के बड़े भाई को भी पशु रूप में ही तो धर्म का ज्ञान हुआ था । सिद्धांत शास्त्र के कर्म
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