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(सिरि भूवलय
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॥१२९॥
॥१३०॥
॥१३१॥ ॥१३२॥ ॥१३३॥
॥१३६॥
चारित्र सार सदवलय ॥१२६।। सार ज्ञनामुतनिलय । ॥१२७॥ दारयकेयवरन्क वलय
घोरत्ववळीद भूवलय करुणेय धर्मवर्धनवागे लोकदे। बरुव कष्टगळेल्ल कर* गी | गुरुविगे शिष्यने गुरुवागुवागल्ली । दोरेव समाधियोळ् मोक्ष त्नगे ताने सिद्धियागुव कालदी। जिन् धर्मदतिशय बेळगि ॥ घन वेद द्वादसदनुभववेरलु । जिनवर्धमानन धर्म तारुण्यव होंदी मन्गल प्रात। दारदन्ददे नवनम न* || वेरलु बन्दिह अध्यात्म वय्भव । शूर मुनिगळ दारी इह रोग शोकगळेल्ल करगुव योगद। सागर पल्य शलाके ॥ यागुव म*हिमेय नवमानक बन्धद । साघन कर्म सिद्धानत श्री गुरुपदद सिद्धान्त ॥१३४॥ नाग नरामर काव्य
॥१३५।। आग पेळिद योग काव्य • तागुवात्मध्यान काव्य
॥१३७॥ नाग सम्पगे पुष्प वय्दय ॥१३८॥ भोग योगद सिद्धी काव्य भोगद पतिय कळेव
॥१४०॥ श्री गुरु शिवकोट्याचार्य ॥१४१॥ आग बाळिद शिवायनन रोगव केडिसिद काव्य
॥१४३।। नागमल्लिगे कृष्ण पुष्प ।।१४४॥ तागलु स्वर्ण सिद्धान्त हेगेयु तप्पद योग ॥१४६।। नागार्जुन सिद्ध कावय
॥१४७॥ आगिर्द कापुटानक श्री गुरुवर सेनगदि ॥१४९।। राग्दि पेळ्द सिद्धानत
॥१५०॥ साधनवह स्वर्ण काव्य
राग विराग भूवलय अष्ट महाप्रतिहार्य वय्भववनु । स्पष् टगोळिसिदादि वर ह । इष्टार्थवेल्लात्म सम्पदवेन्नुव । 'अष्टम जिन सिध्धद काव्य णुणुपाद गडुचाद धर्म कर्मद लोह । दनुभववदे स्वर्ण श्री*॥ अनुभवगम्यद समवरणद काव्य । घनसिद्धरस दिव्य काव्य तनुवनाकाशके हारिसि निलिसुव । घनवयमानिक दिव्य काव्य ॥ प* नसपुष्पद कावय् विश्वम्भर काव्य । जिनरूपिन भद्र काव्य न्नेकोनेवोगिसी भव्य जीवरनेल्ल । जिनरूपिगेदिप काव्य ॥ र* नकहळेय कूगनिल् लवागिप काव्य । दनुभव खेचर काव्य तेरनु एळेयुव दारियोळ् बरुवन्क । दास्यकेय मादलद ॥ सार मा* अववनु बेरेसि माडुव दिव्य । नूरारु रोग नाशकद । दारिय पुष्पायुर्वेद ।।१५८॥ मारनन्गय्य केदरीयं
॥१५९॥ सार हविन दिवय योग साराग्नि पुट दिव्य योग ॥१६१।। पादर पारि पुष्प
॥१६२॥ पारद जयदग् नियोग सारत्म शुद्धि पारदव ।।१६४॥ नूरारु सम्पुट योग
॥१६५॥ सारस्वतर वाहनद ऐरिसि तिळिव पारदद्
॥१६७।। श्रीरमे गिरियकर्तिकेय ।।१६८॥ सेरिसे बरुव हूवुगळ
॥१३९॥ ॥१४२।। ॥१४५|| ||१४८॥ ॥१५॥ ॥१५२॥
॥१५३॥ ॥१५४॥ ॥१५५॥ ॥१५६॥
॥१५७॥
॥१६०॥ ॥१६३॥ ॥१६६॥ ॥१६९॥
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