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-(सिरि भूवलय
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नव पद काव्य भूवलय विश्वदग्रके गमनवनि? योगीयु । विश्वेश्वर सिद्धवर वे* || दस्वरूपरध्यानिसुत भावदोळिर्प । विशवज्ञ काव्यदग्रविदु । प्रमाम्तकाव्य अरहन्त भाषित । गुरु परम्परेय्आदी प*दद । गुरु सिद्धपदप्राप्तियागबेकेम्बर्गे । सरसविद्यागम काव्य । पद्धतियोळु चकबन्ध हम्सद बन्ध । शुद्धाक्षरान्क र* क्षेयनु || होद्दिद अपुनरुक्तामर पद्मद । शुद्धद नवमानक बन्ध वर पद्म महापद्म द्वीप सागर बन्ध । परम पल्यद अम्बु बन्ध ॥ सरस शलाकय श्रेणियन्कदबन्ध । सरियागे लोकद बन्ध रोमकूपद बन्ध क्रौन्च मयूरद । सीमातीतद बन्ध । कामन प* दपद्म नख चक्र बन्धद । सीमातीतद लेक्क बन्ध नेमद किरणद बन्ध ॥९०॥ स्वामिय नियमद बन्ध
॥९१।। हेमरत्नद पद्मबन्ध हेम सिम्हासन बन्ध ॥९३॥ नेमनिष्ठेय व्रतबन्ध
॥९४॥ परेमरोषव गेलद बनध श्री महावीरन बन्ध ॥९६॥ ई महियतिशय बनध
॥९७॥ कामन गणीतद बन्ध आ महामहिमेय बन्ध ॥९९॥ स्वामिय तपद श्री बन्ध
॥१००। सामन्तभद्रन बन्ध श्री मन्त शिवकोटी बन्ध
आ महिमन तपत बन्ध
॥१०३॥ कामितफलवीव बन्ध नेम शिवाचार्य बन्ध ॥१०५।। स्वामि शिवायन बन्ध
॥१०६। नेमनिष्ठेय चक बन्ध
कामित बन्ध भूवलय उत्तम सम्हननद चक्रबन्ध म । त्तु ष्ट देहद रा*ग ॥ चित्तजनन्दद सम्स्थानबन्धदे । सुत्तुवरिद दिव्य बन्ध वरद सम्यग्दर्शनदादिय बन् ध । गुरु परम्परेयआ आ चाम्ल ॥ वर तपबन्धद सरमग्गिकोष्टक । विरुव अध्यात्मद बन्ध तपिसुत देहवु उपसर्गकेडेयागे । अपरिमितानन्दन् अव * आ ॥ सुपवित्र भावद सत्यवय्भव बन्ध । उपशममयादी बन्ध नव पद्मबन्धद कटिनोळ कट्टीद । अवर सच्चारित्र य* बन्ध ॥ अवतारविल्लद अपुनरावृत्तीय । नवमान्क बन्ध सुबन्ध तेरस गुणठाणदोळगात्मन कूडी । सार धर्मव राशी माडी ॥ वीर गु*णगळ अनन्तान्कदोळु कट्टी । सारवागिसिह भूवलय शूरवागिसिद भूवलय ॥११४॥ नूरारनन्त भूवलय
।।११५।। सारत्मरावास वलय धोरर चारित्र्य वलय ॥११७॥ दारीयोळपवर्ग निलय
॥११८॥ सेरुवध् यात् म निर्ममव कर कारी विलयद ॥१२०॥ दारिय तोर्वन्क निलय
॥१२१।। भूरी वय्भवद सद्वलय घोरोपसर्गद विलय
।।१२३॥ सारत्म शिखेयादि निलय ।।१२४॥ करकार्मणदेहविलय
॥९२।। ॥९५॥ ॥९८॥ ॥१०॥ ॥१०४॥ ॥१०७|| ॥१०८॥
||१०२।।
॥१०९।। ॥११०॥ ।।१११।। ||११२॥ ॥११३।।
॥११६।। ||११९|| ॥१२२॥ ॥१२५॥
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