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(सिरि भूवलय -
।।१७२।।
।।१७३॥ ||१७४॥
दारिय गुणवरुदधियनक ॥१७०॥ मूरर वरग शलाके
॥१७१॥ यारयके इरुव भूवलय
शूरर कावय भूवलय सेरद मनवनु पारददोळ् कटि । नूरु साविर हूवुगळ।। सारव त्*न्दु माडुत रसमणियनु सेरिसे भुवलय सिद्धि । सरुवार्थसिद्धीयग्रद श्वेत (शिलेयद) छत्रव । बरेदनकमार्ग म्* बरलु ॥ अरुहादि ओम्बत्तम् बेरेसिह ताणदो (रियिरि सिद्धान्तवदम्)
ळरिव सिद्धान्त भूवलय आगम मार्गद हदिमूरुकोटिय। तागिद (प्राणावाय) आयुर्वेदवनु ।। सागरवन् ने* रि (अपुनरुक्ताकषर) अपुनरुकतान्कद। सागर रत्न मन्जूष इरुवभूवलयदोळेळ्नूर हदिनेन्टु । सरस भाषेगळवतार ॥ न* ररिगे प्रथम सम्योगद बहुदेम्ब ।सिरियिह सिद्ध भूवलय । सिरियिह एरडने योग
॥१७८॥ सिरियिह मूरु सम्योग ॥१७९।। सिरियिह नाल्कु सम्योग परिबाह अरवत्तनाल्कुम्
॥१८१॥ परमातम् कलेयन्क भन्ग ॥१८२॥ परमाम् रुतद भूवलय रिद्धियादा मूरु आदि बन्गदतेर । होदिकोन्डिह अन्कगळ ।। म*द् दिनोळेळुसाविरदिन्नूरतोम्बत्तु । शुद्धान्कवागलु इ ल्लि याव अन्तर आरेरडोम्बत्ताहत्तु । ई वक् षरगळेल्लवाहह । पावनदन्कगळन्तर काव्यव । नोवदे (भावदे बरुवन् कवेल्ल) काव भूवलय
इ ७२९०+अन्तर १०९२६=१८२१६ अथवा अ-इ-४६६११+१८२१६=६४८२७
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