________________
- सिरि भूवलय
पुस्तक को महामस्तकाभिषेक के दिन दान में दिया गया था और वह दिन महामस्तकाभिषेक का ही दिन था।
इस प्रकार मैंने सिरि भूवलय के कार्य को आरंभ किया और अनेकों की सहायता से इस कार्य को पूर्ण किया इस कार्य को करने के पीछे मेरी सिर्फ यह भावना रही कि यह एक पुण्य ग्रंथ है और यह कार्य ईश्वर का कार्य है। इस भावना ने मुझे कार्य करने की शक्ति दी उत्साहित किया और प्रेरित भी आप सब के सहयोग से मैंने यह कार्य संपूर्ण किया है मैं अपने इस कार्य ईश्वर को अर्पित करती हूँ।
इस ग्रंथ के अनुवाद में एक बात मैं विशेष रुप से कहना चाहती हूँ कि इस ग्रंथ के अनुवाद में किसी भी तथ्य या सत्य को जोडा नहीं गया है। कन्नड के प्रथम संस्करण का यथारूप अनुवाद किया गया है। अनुवाद का कार्य भावार्थ के आधार पर किया है शब्दार्थ या वाक्यार्थ के आधार पर नही । साथ ही कुछ शब्दो के यथा रूप का भी प्रयोग किया है। वे शब्द कन्नड के तो है पर उन शब्दों के प्रयोग से पाठको को कुछ नयेपन का एहसास होगा। १) राष्ट्रपति के लिये - राष्ट्राध्यक्ष २) टाइप राइटर के लिये - बेरलच्चु ३) कन्नड भाषियो के लिये - कन्नडिगा (हम महाराष्ट्रीय तमिलियन, मलयाली, असमिया
आदि शब्दो का प्रयोग प्रांत और भाषा के आधार पर करते हैं तो कन्नड भाषियो के
लिये कन्नडिगा। ४) पत्रकारिता के क्षेत्र के लिए - पत्रिकाद्योगी ५) पहाडा के लिये - सरमग्गी कोष्टक ६) शायद के लिए - बहुशः ७) गवाला के लिए - गोटिंगा इस ग्रंथ कार्य की पूर्णता सरस्वती जी के सहयोग के बिना मुमकिन नही था उनका परिचय देना मेरे लिए संतोष का विषय है।
22