________________
सिरि भूवलय
यूँ तो जितने भी नाम हैं सभी बंगलोर के ही निवासी हैं फिर भी न जाने मेरी दृष्टि में मोहन जी का ही नाम क्यों आया और मैंने उनसे संपर्क साधने का निश्चय किया ।
मैंने नीलम शर्मा जी से दूरभाष पर संपर्क कर उनसे मोहन जी का पता तथा दूरभाष का नंबर लिया फिर मोहन जी से संपर्क किया पर मेरा दुर्भाग्य कि मेरी बात मोहन जी से न हो सकी। उनकी बहू श्रीमती वंदना राम मोहन जो इस पुस्तक के विषय में विशेष जानकारी रखती हैं उनसे मेरी बातचीत हुई उन्होंने मुझसे वादा किया कि वे मोहन जी को मेरे विषय में इत्तला देंगी । दो दिनों के पश्चात मोहन जी का फोन आया और उन्होने यह जानकर प्रसन्नता जाहिर की मैं इस कार्य को करना चाहती हूँ। मोहन जी ने बंगलोर आने पर मिलने को कहा और उन्हीं दिनों दूसरे हिन्दी सम्मेलन में मुझे भाग लेने का अवसर मिला और सम्मेलन के तीसरे दिन मैं मोहन जी से मिलने उनके निवास स्थान पर गई और उन्होंने मुझे सिरि भूवलय की संक्षेप में संपूर्ण जानकारी दी और विश्वास दिलाया कि यह कार्य जरूर पूर्ण होगा ।
___ पाँडीचेरी लौटने के बाद मैंने इस कार्य को आरंभ करने का निश्चय किया। परन्तु कुछ कारणों से मैं यह कार्य आरंभ न कर सकी और दिन पर दिन बीतते
उन्हीं दिनों श्रवण बेळगोल में गोम्मटेश्वर की मूर्ति का महामस्तकाभिषेक आयोजित किया गया था । बहुत चर्चा थी इस महा मस्तकाभिषेक की।
तभी एक अविश्वसनीय घटना मेरे साथ घटी । महामस्तकाभिषेक के पहले दिन भोजन के पश्चात जब मैं विश्राम कर रही थी, तब एक आवाज़ मेरे कानों में गूंजती सी महसूस हुई जैसे मुझसे कहा जा रहा है “उठो विश्राम करने का वक्त नहीं है अभी तुम्हें एक बहुत बड़ा कार्य पूरा करना है वह कार्य तुम्हे संसार को दिखाना है उठो और कार्य आरंभ करो” ।
उस आवाज़ से मैं चौंक उठी। देखा साँझ घिर आई है। तभी मैंने निश्चय किया कि चाहे जो भी हो जाए इस कार्य को तो मुझे करना ही है । दूसरे दिन स्नानादि के पश्चात मैंने सिरि भूवलय पुस्तक को भगवान के पास रख, दियाबाती कर कार्य आरंभ किया और कार्य के आरंभ के पश्चात ज्ञात हुआ कि इस
21