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सिरि भूवलय
कर हमारे कार्य की भरपूर प्रशंसा की शाबासी दी और इस संस्करण को किसी भी प्रकार से हिन्दी में लाने की अपनी इच्छा को प्रकट किया और इस कार्य के लिए हमें शुभकामनाओं के साथ हमें विदा किया ।
इस विचार को जानकर वाराणसी के हनुमान घाट के निवासी बुजुर्ग और हमारे अपने श्री विश्वनाथ शर्मा जी ने मुझे आमंत्रित कर वाराणसी के प्रखंड विद्वान श्री पंडित वागीश शास्त्री जी से मेरा परिचय कराया।
पंडित वागीश शास्त्री जी को कुमुदेन्दु मुनि विरचित सिरिभूवलय के विषय में पहले से ही जानकारी थी । इस विषय पर हिन्दी में अनेक लेखों को पहले ही प्रकाशित किया था । हमारी उनसे हुई मुलाकात में उन्होंनें इस कन्नड काव्य को किसी भी तरह से हिन्दी में पूर्ण प्रमाण से प्रकटित करें ऐसा अभिप्राय व्यक्त किया ।
परन्तु उस समय की हमारी समस्या यह थी कि हमें कन्नड से हिन्दी भाषा में अनुवाद करने वाले की और सिरि भूवलय के विषय में विशेष आसक्ति रखने वाले अनुवादक की आवश्यकता थी ।
इस विषय को जानकर हमारा संपर्क पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ़ लिमिटेड के अधिकारी श्री एच. एन. सदानंद और श्रीमती नीलम शर्मा जी से हुआ। उनके द्वारा अनुवादकी कन्नडति पाँडीचेरी निवासिनी श्रीमती स्वर्ण ज्योति जी को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित कर परिचय कराया । श्रीमती स्वर्ण ज्योति जी की सहायता, सहकार, साहस हाथ में लिये कार्य को पूर्ण करने के निश्चय के फलस्वरूप इस पूर्ण प्रमाण का प्रथम हिन्दी संस्करण आपके समक्ष है।
श्रीमती स्वर्ण ज्योति का जन्म स्थान मैसूर है और उनकी मातृभाषा कन्नड होते हुए भी हिन्दी भाषा पर उनका अच्छा अधिकार है। उन्होंने अर्थशास्त्र और हिन्दी साहित्य के इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है साथ ही उन्होंने हिन्दी में सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा की उपाधि भी प्राप्त की है। हिन्दी में लेखन उनकी विशेष रुचि रही है। पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं और इनका एक काव्य संग्रह “अच्छा लगता है” प्रकाशित हो चुका है। पुदुचेरी की स्थानीय भाषा तमिल का भी ज्ञान रखती हैं और एक तमिल काव्य संग्रह का हिन्दी में अनुवाद कर चुकी हैं (प्रेस में)
सीधे, सरल और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी श्रीमती स्वर्ण ज्योति जी अपनी पारावारिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए साहित्य की जो सेवा कर रही है
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