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सिरि भूवलय
लगभग ५० साल पहले पडित यल्लप्पा शास्त्री और कर्लमंगलं श्रीकंठैय्याजी के द्वारा किए गए अपार परिश्रम, देश की जनता के समझ में नहीं आया यही बहुत खेद की बात है । इसी खेद के साथ उन साधकों को एक बार और पुनः प्रणाम करते हुए पत्रागार इलाके के अधिकारियों और नौकर-चाकरों को भी प्रणाम करते हुए दुखीः मन से बाहर आया । इस हस्तप्रति का संपूर्ण लाभ हमारे देश की जनता को मिले और इस अपरूप ग्रंथ के महत्व को विश्वभर में परिचय कराते हुए इसके द्वारा कन्नड भाषा साहित्य-संस्कृति की श्रेष्ठता और महत्व गौरवांवित हो यही समझकर मैने इस जानकारी को वाचकों के ध्यान में लाने का प्रयत्न किया है। सिरि भूवलय के भाषांतरण के संदर्भ में दो बाते कहना चहता
लेखिका परिचय
कुमुदेन्दु मुनि विरचित सिरि भूवलय विश्व का एकमात्र अंक काव्य है। पुस्तक शक्ति के द्वारा यह ग्रंथ प्रकाश में आया है। यह ग्रंथ शुद्ध मध्य युगीन कन्नड भाषा में रचित है। इस कारण इस ग्रंथ का प्रचार-प्रसार दक्षिण भारत में भी बहुत प्रयासों के बावजूद इच्छित प्रमाण में नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में उत्तर भारत में इस ग्रंथ का प्रचार मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लग रहा था, इसी समय पुस्तक शक्ति का सौभाग्य रहा कि पदचेरी निवासिनी श्रीमती स्वर्ण ज्योति से हमारा परिचय हुआ जिन्होंने इस ग्रंथ का हिन्दी में अनुवाद करने की सहर्ष स्वाकृति दी।
श्री कुमुदेन्द गुरु विरचित सर्व भाषा तथा गणित सिद्धांत के द्वारा रचित पूर्ण प्रमाण का अद्भुत सिरि भूवलय कन्नड ग्रंथ को राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में लाने के लिये अनेक प्रयत्न किये गए संघ-संस्थाओं से पिछले ३०-४० वर्षों से यह प्रयत्न किए जाने के पश्चात भी संपूर्ण ग्रंथ अपने ही कारणों से प्रकाश में न आ सका।
__ इस कार्य के लिए पुस्तक शक्ति के लिये शुभारंभ और सवाल दोनों ही तब सामने आए जब मैं अपने निजी कार्य के सिलसिले में अक्टूबर २००४ में दिल्ली के प्रवास पर था । तभी एक दिन ज्ञानपीठ प्रशस्ति प्रदान करने वाली संस्था के निर्देशक श्री प्रभाकर श्रोती जी ने मुझे अपने कार्यालय में न्यौता दिया और सिरि भूवलय के विषय में और हमारी संस्था के द्वारा तभी हाल में ही प्रकाशित सिरि भूवलय के प्रथम संस्करण के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त
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