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सिरि भूवलय
साधुओं, के विषय में उल्लेख करते हुए उनके नामों को विशेषण से मिले अंकों को कवि सूची बना कर प्रस्तुत करते हैं।
सिध्द रस को तैयार करने में आवश्यक तीन का पहाड़ों का एक हिसाबकिताब देकर उस रस से प्राप्त प्रयोजन के देते हैं । जैसे, वह रस आशाओं की पूर्ति करता है राशी कर्मों को न करता है, राशी ज्ञान को प्राप्त कराता है, औषध रूप बन कर रहता है।
यह भूवलय गुरु गौतम से प्रणीत ( बनाया हुआ ) होकर भक्तों द्वारा प्रवाहित हुआ आगम (वेद शास्त्र) है
रस सिध्दि के लिए कारण बनने वाला आवश्यक अशोक, न्यग्रोध, सप्त प्रणांक शाल, सदल प्रियंगु, शिरीष, श्री नाग, अक्ष, धुलियवण, पलाश, पाटल, नेरिल, दधीपर्ण, नंदी, तिलक, बिली मावु (सफ़ेद आम), कंकेली, संपगे, बकुल, सळरस, मेषश्रृंग, यशधूल, धवशाल, वरदेरस, आदि २४ पुष्ट जाति के पेड-पौधों वृक्षों के नामों का उल्लेख किया गया है। आर्युवेद के “पुष्प रस” सिध्दांत में इन वृक्षों के विषय में विवरण प्राप्त हो सकता है।
सिध्द को नमस्कार करते हुए चलने वाले योग से लोकाग्रक पर पहुँचने वाले योगी को कहते हुए, गुरुओं के द्वारा आचरण की रीति ही देश के आचरण को दर्शाती है, ऐसा वर्णित करते हैं । कवि कुमुदेन्दु अहितकर काढे (क्रोध, माया, मोह) को निर्मूल करने की रीति का वर्णन करते हुए सिध्द बनने के लिए आयोग केवली बनने के लिए काढे का वियोग होना है । उसके लिए इस गहरे संसार का नाश और देह वर्जना होना है ऐसा निरूपित करते हैं ।
ह्रस्व, दीर्घ, प्लुतों से बने हुए स्वर वर्ण २५, ८ अवर्गीय व्यंजनों, साथ में ४ योगवाहों, इस प्रकार कुल मिला कर अक्षरों के हिसाब को " अ महप्रातिहार्य” कहकर संबोधित किया गया है। इस " अ महाप्रातिहार्य " मे एक हुए सिंह के स्वरूप को नाल्मुगद सिंह (चार चेहरे वाला सिंह) कहकर वर्णित किया गया है। “यापनीय संघ" का भी उल्लेख मिलता है ।
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अष्टम् “ ऊ” अध्याय
यह अध्याय तीर्थंकरों के वाहन, सिहों के आकार, स्वरूप पर प्रकाश डालता है। आदि नाथ के लिए ५००, नव धनु की ऊँचाई, अजित नाथ के लिए ४५०,
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