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सिरि भूवलय
१८ लिपि- भाषायें इस काव्य में समाहित है , कहा जाता है। इस भूवलय में ब्राह्मी प्रथम लिपि अंक, यवनांक दूसरा, मरळिद दोष उपरिका तीसरा, वराटिका चौथा जीवरसापिका लिपि पाँचवाँ, प्रभारात्रिका छठवाँ, उच्चतारिका सातवाँ, पुस्तिकाक्षर, आठवा, भोगयवत्ता नवा, वेदनतिका दसवा, निन्हतिका ग्यारहवाँ, सरमाले अंक बारहवा, परमगणित तेरहवाँ, गांधर्व चौदहवा, आदर्श पंद्रहवा, महेश्वरी सोलहवाँ, दामा सत्रहवाँ, और बोलिदि अठठारहवाँ है। इन सभी लिपियों को अंकों को लिखा जा सकता है, उच्चारित किया जा सकता है, कहा गया गया है। ये सभी सरस अंकाक्षर लिपि हैं।
यशस्वती देवी की छोटी बहन सुनंदा के बेटे बाहुबली/कामदेव, के त्याग सिध्दि को इस भूवलय में देखा जा सकता है । यह ७०० अक्षर भाषाओं को समझने में सहायक चाक्क कन्नड भूवलय; इसको बाहुबली और उनकी बड़ी बहन ब्राह्मी जानते थे । इसमें ६४ अक्षरों के नवमांक शून्य पध्दति हैं। यह एक सरमग्गी को क (गुणन सूची, पहाडा) काव्य है ।
षष्टम् “ ही" अध्याय
___ यशस्वती देवी की बेटी ब्राह्मी ने समझ कर ७०० से भी अधिक, पशु देव नारक, भाषाओं को समाहित काव्य यह भूवलय है । द्वैत-अद्वैत और अनेकांतों को हितकर रूप से सिध्द करने का कार्य इस काव्य से चल रहा है। यह नाळे काणिसुवा अद्वैतद (कल दिखने वाला) काव्य है। हनुमंत जिन का केलसांक, मुनिसुव्रतर अंक, वर्धमानांक, वाली मुनियों का गिरियांक, शुध्द रामायणदंक, कवि वाल्मिकि का महाव्रतदंक, विषहर नील कंठांक इस प्रकार वैदिक जैन देवताओं, कवियों, के नाम का उपयोग किया गया है। इससे हरिहर जिनधर्म का अर्थ भी प्राप्त होता है ऐसा कथन भी यहाँ है। सप्तम् “उ” अध्याय
यशस्वती देवी और सनंदा के पति रस ऋषि ऋषभ नाथ तीर्थंकर, २४ जिन तीर्थंकरों के अंकों और उनसे संबंधित कुछ विचारों की सूची इस विषहर काव्य भूवलय में निरूपित हुआ है। उदाहरण के लिए असमान सिध्द सिध्दांक, कुसुमायुधन गेल्दंक, असदृश्याजित नाथंक तथा अलग-अलग रीतियों में तीर्थंकरों, जिनों, सिध्द