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( सिरि भूवलय
संग्रह सारांश
प्रथम खंड मंगल प्राभृत प्रथम 'अ' अध्याय
अष्टमजिनों को नमस्कार करते हुए यह सिरि भूवलय आरंभ होता है। नवकार मंत्र सिध्दि के लिए कारणों को कहते हुए उसके लिए टवनेय कोलू( जोडी दंड), पुस्तक, पिंछ(मयूरपुच्छ), पात्रे(बर्तन) और कमंडल की सहयता की आवश्यकता है ऐसा निरुपण है। इस कृति में ओंकार का अतिशय है। इसको “महावीर वाणी प्राभृत" कहते हैं, ऐसा कहते हैं ।
___ गोमट देव अपने बड़े भाई भरत को चक्र बंध के जंगल में बाँधे गए विश्व काव्य यह भूवलय, विंध्यगिरि के निजसत्व दर्शन को दिखाने वाले, विजय धवल का भूवलय, इसको कर्माटक वलय मंगल काटक कहते हैं ।
___ यशस्वती देवी की बेटी ब्राह्मी को कर्माटक ऋषि ने ६४ अक्षरों में बटकर (मिलाकर) अंगैय (हथेली) भूवलय कहकर उस ६४ अक्षरों के स्वरूप को वर्णित किया गया है।
__इस भूवलय के अंक, अक्षर, पद्मदल, ऐवत्तोंदु सोन्ने कालु लक्ष्या अर्थात ५,१०,२५,००० पाँच करोड दस लाख पच्चीस हजार। इसमें ५०० को मिलाया जाए तो भूवलय में कुल मिलाकर ५ करोड, १० लाख, ३० हजार, अक्षर प्रमाण सिध्द होते हैं। कुमुदेन्दु इस अक्षर प्रमाण को नौ से भाग करते हुए नवमांक गणित पध्दति के प्रकार से वर्गीकृत करते हैं । ९-२७-८१-७२९ और ६-१२-७-९ वर्ग को बनाकर ९५९४९४९= ६५६१ प्रमाण के गणित का निर्णय लेकर अध्याय को समाप्त करते हैं। द्वितीय “आ” अध्याय
इस परे अध्याय में अनेक गणित के हिसाब-किताब हैं। सरमग्गी (गणन सूची, पहाडा) कोष्टक में है, ऐसा ग्रंथ संपादक के कहे कथन को छोड दिया जाए तो ग्रंथ पाठ के अनुवाद को देना क कर है । करण सूत्र, गणिताक्षरांक, अनुलोम,
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