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- सिरि भूवलय अध्याय ६ श्लोक-२०६, अंक संख्या-२०,७३६ पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठैय्या
यहाँ अद्वैत-द्वैत अनेकांतों को अपने जैनत्व में बाधित न होने की तरह से मिलाकर अपने तत्व शास्त्र में समायोजित करते हैं ।
के. अनंतसुब्बाराव ____ इस अध्याय में अद्वैत-द्वैत अनेकांक और अन्य ३६३ मत धर्म के समन्वय को हरिहर जिनधर्म का वर्णन किया गया है। इस काव्य से सर्वार्थ सिध्दि होने की भी अपार प्रशंसा की गई है।
__ अध्याय ७ श्लोक-२१३, अक्षर-२१,१५० पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठैय्या
यहाँ गुरु परंपरा से साधित आत्मा की साधना समाहित योग का “भूवलय" कह, दर्शन शक्ति, ज्ञान शक्ति, और चरित्र वेरेसिद रत्न वरव कह “बरेय बारद, बरेदरु ओदलारद सिरि सिध्दांत भूवलय” (न लिखा जाने वाला, लिखा गया तो न पढा जाने वाला सिरि सिध्दांत भूवलय) कह कर घोषित किया गया है। मान, माया, लोभ, क्रोध रूपी कषाय (काढा) आत्मा स्वरूप को किस तरह मुक्ति की ओर नहीं पहुँचाती, उसे समझा कर उस को गणित पध्दति के प्रकार से कह, जिन बिम्ब का दर्शन कर कषायों को छोडना ही आनंद रूप को प्राप्त होना, कहते हैं। रस सिध्दि के लिए आवश्यक २४ जाति पुष्पों को, रस के उपयोग को वर्णित कर “अष्ट महा प्रातिहार्य" में एक सिंह का नाम कह, कर्नाटक का चिन्ह नाल्मुगद (चार चेहरे वाला सिंह, हमारा राष्ट्रीय चिन्ह) होगा ऐसी भविष्य वाणी उसी समय की थी।
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