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(सिरि भूवलय अध्याय ४ श्लोक-१८५, अक्षर संख्या-१८,२१६ पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठैय्या
इस पूरे अध्याय में काव्य बंध स्वयं कुछ गुरु परंपरा के भागों को कहकर, रर्स सुवर्ण ही लौह शुध्दि के विषयों के सूक्ष्म रूप से विवरित करते हैं। यहाँ रस शुध्दि के लिए अनेक पुष्पों के नाम कहते हैं। इस अध्याय में रस मणि शुध्द रूप में, वैद्य शास्त्र का वाचकों को परिचय देते हैं । मुख्य पुष्प अर्थात नाग संपिगे, नाग मल्लिगे, कृष्ण पुष्प, पनस पुष्प, (यह रस शुध्दि के लिए प्रमुख है और विमान निर्माण के लिए उपयोगी) मादल, मारनंगैय, केदिगे, पादरी और गिरिकर्निगे इन आठ पुष्पों के सार (रस) को पाद रस (पारा) मिलाकर रस सिध्दि कर रस मणि मिलता है, ऐसा कहते हैं । के. अनंतसुब्बाराव
इस अध्याय में भी अपार रूप से काव्य महिमा का वर्णन करते हैं। इस काव्य को बाँधे गए चक्र बंध, हंस बंध, आदि नाग रसमणि मोक्षसिध्दि के क्रम को कहा है।
अध्याय ५ श्लोक-२०१, अक्षर-२०,०२५ पंडित यल्लप्पा शास्त्री, कर्ल मंगलं श्रीकंठय्या ।
इसमें अनेक देश भाषाओं के नाम अंकों के नाम कहकर भाषाओं के वर्गीकरण को स्पष्ट करते हैं । यहाँ अनेक भाषाओं के नाम लिपिया, नव कर्माटक, की भाषाओं को गणित बंध में बाँधे गए विषय का विवरण देते हैं। अंत में २४ तीर्थंकरों के नाम के गणित का विवरण देते है। के. अनंतसुब्बाराव ___इस अध्याय में नव मांक बंध नवमांक महिमा, रिध्दि-सिध्दि, नवपद सिध्दि, अनेक गुरु मुनि तीर्थंकरों के नाम दिए गए हैं। इस काव्य में आने वाले ७१८ भाषाओं में से केवल कुछ भाषाओं के नाम इस अध्याय में दिए गए हैं और १८ महा भाषाओं और उनके अंक लिपि के नाम दिए गए हैं ।
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