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सिरि भूवलय
हैं ऐसा दिखाया गया है। उदाहरण; गज नाम के दो अक्षर से जग नाम का एक और शब्द, दवन नाम के एक सामान्य तीनाक्षर से वनद, नवद, दनव, वदन, नदव, आदि छह शब्द बन, इसी प्रकार ६४ अक्षरों के संयोग भंग से ९२ अलग-अलग अंकों के बराबर समस्त शब्द भंडार का सृजन होता
यह गणित भी इसी साहित्य की भाँति अर्थात् सागर के बराबर ही होगा। क्योंकि जितने अंक हैं उतने ही अक्षर भी होंगें यह कथन स्वतः सिध्द होती है। इससे सभी शब्द पहले ही सृजित हुए हैं ऐसा व्यक्त होता है और ये ६४ ध्वनियाँ किसी एक बंधन के द्वारा बाँधे गए होने के कारण समस्त साहित्य सहज रूप में पहले ही सृजित हुआ होगा ऐसा जान पडता है। ऐसा कौन सा गणित का बंधन है इसे गणितज्ञों को ढूंढना है। ( इस ग्रंथ में कहे
गए गणित विवरणों को एक और पुस्तक में दिया गया है)। २३. उसी कारण इससे केवल १ से लेकर ९ तक और ० से लिखे गए ९२
संख्याओं में ध्वनियों में अथवा अक्षरों में दुनिया की समस्त भाषाओं के समस्त ध्वनियों को बाँधा जा सकता है और कोई भी किसी भी भाषा के शब्दों को किंचित भी गलती के बिना स्पष्ट रूप से लिख पढ सकता है । इससे आज बृहदाकार रूप धारण करने वाली बहू भाषा लिपि की समस्या, दैवानुग्रह से संसार में एक रीति से रहने वाली केवल १ से लेकर ९ तक
अंक संख्या गणित के कारण बड़ी आसानी से सुलझ सकती है । २३. इस ग्रंथ के विशेष प्राक्कथन में सकल काव्य सृजन के लिए प्रारंभ का
कारण बनने वाले शून्य से किस प्रकार कन्नड के अंक उत्पन्न हुए इसे समझा जा सकता है । कमोबेश इसी प्रकार से अंग्रेजी और संस्कृत के अंकों
का भी रहना एक आश्चर्य जनक विषय है। २४. इस प्रकार यह ग्रंथ हजारों वर्षों के पहले ही संसार के ७१८ भाषाओं को,
३६३ मतों को, ६४ कलाओं को (विद्याओं) समाहित किया हुआ एक मात्र विश्व साहित्य है।
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