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-(सिरि भूवलय
९वाँ अक्षर नीचे की ओर :- गीर्वाणी :- दिवयगिह दिवया अमानुषि।। २७वाँ अक्षर- नीचे की ओर:- तेलगु:- सकल भूवलय मुनकु।। ५४वाँ अक्षर- नीचे की ओर:- तमिल:- अगर मुदल एळत तललां ।। इसके उपरांत पाद-पद्यों में पहला अक्षर नीचे की ओर :- अपभ्रंश:- वनदिततु सवव सिदधे दुव ॥ "_' चिन्ह के बीच अंतर साहित्य :- शौरसेनी:- णमोअरहताणं ॥ ब्यासी पद्य से "-" चिन्ह के बीच आने वाले अंतर साहित्य से :- अर्ध मागधी:बारह अन गानगीजा ।। (धवल सिध्दांत) इस प्रकार सिरि भूवलय के संपूर्ण होने की पहले दुनिया के समस्त भाषाओं में भी लाखों-करोडों श्लोक, साहित्य ललित कन्नड सांगत्य पद्यों में सृजित होकर पूरी दुनिया को भरने के बराबर उभरेंगे। १९. इस ग्रंथ से उत्पन्न होने वाले अनेकानेक श्लोकों से सजित होने वाले
श्रीमद्भगवद् गीता, ऋषि मंडल, मोक्ष सूत्र, आदि के साहित्य को अलग से
दिया गया है। २०. इस प्रकार कन्नड में अंकाक्षर विज्ञान में दुनिया की समस्त भाषाओं को,
समस्त मत धर्म शास्त्रों को, वैद्य, शिल्प, विज्ञानादि समस्त कलाओं को, बांधने की एक महा शक्ति है, ऐसा श्री कुमुदेन्दु आचार्य ने प्रत्यक्ष रूप से दुनिया को दिखाया है तथा दुनिया में रहने वाली समस्त भाषाएँ कर्माटका और कर्नाटका नाम के इस सुन्दर. कर्नाटका भाषा में समस्त भाषाएँ स्वयंमेव सुललित रूप से प्रवाहित होती है इसे किसी भी कृत्रिम मार्ग के बिना गणित सिध्दांत में, सरमग्गी कोष्ठक (गुणन सूची, पहाडा) के समान सहज रूप से
बांधा गया है ऐसा इस ग्रंथ में कई स्थानों पर कहा गया है । २१. इस गणित सिध्दांत के द्वारा १ से लेकर ६४ ध्वनियों में एक विशिष्ट रीति
के विविध संयोग भंग के द्वारा (permutation & comabination) संसार के सभी शब्दागमों को ९२ अलग-अलग अंकों में (digits) समाप्त होते हैं उसमें भूतकाल, वर्तमान काल तथा भविष्य के सभी शब्द स्वयंमेव ही उत्पन्न हुए
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