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________________ ( सिरि भूवलय के निकट समकालीन रहे होंगें, ऐसा जानकारी मिलने के कारण कुमुदेन्दु के दादा-पिता के नाम के साथ उनके जन्म स्थान के विषय में जानकारी रखते होंगें, ऐसा मालूम पडता है , ऐसा कहते हैं । (प्राकथन पृ.१५) लेकिन नायक व्यक्ति चरित्र के विषय में दोनों रचनाओं के मध्य के अंतर को उन्होंने ठीक से ध्यान नहीं दिया, ऐसा कहना होगा। इस विषय का विमर्शन हो तो सिरि भवलय के कर्ता के जीवन काल की समस्या कुछ हद तक दूर हो सकती है । ___कुमुदेन्दु शतक के एक श्लोक में श्री कंठैय्या जी के द्वारा उद्धृत कुमुदेन्दु के गण गच्छ विवरण इस प्रकार है श्री देशी गण पालितो बुध्नुतः श्री नंदीसंघेश्वरः श्री तर्कागमवारीधी मर्म गुरुः श्री कुन्दकुन्दान्वयः श्री भूमंडल राजपूजित लसच्छ्रि पाद पद्मद्वयो। जियात सो कुमदेन्दु पंडित मुनिः श्री वक्र गच्छाधीपः अर्थात कुमुदेन्दु पंडित मुनि, देशी गण नंदी संघ-कुन्दकुन्दान्वय-वक्र गच्छ यति और राज पूजित हैं, ऐसी जानकारी मिलती है। इस यति से संबंधित समान विवरण दोडडैय्या के संस्कृत भुजबलि शतक के अंत में स्तुतनागिरुवा (स्तुति किए गए) (और मूडबिदरे(एक स्थान) विज्ञप्ति पत्रों में आने वाले) 'पंडित मुनि नाम के यति के स्तुति के संबंध में भी दिखाई पड़ता हुआ, यदि यही कुमुदेन्दु पंडित मुनि हैं तो, ये देवप्पा दोड्डैय्या से बड़े समकालीन रह कर सिरि भूवलय को इन्होंने ही १६वीं सदी के मध्य भाग में कभी रचा होगा कह सकते हैं। तब ग्रंथ की भाषा छंद और वस्तु विवरणों के विषय में कुछ समाधान प्राप्त होने में सहायता मिल सकती है । श्री के. श्री कंठय्या जी ने सिरि भूवलय के नवें अध्य्याय में वीरसेन-जिनसेन महात्माओं के वर्णन के साथ उनके समय काल में मान्य खेट के राजा अमोघवर्ष को भी संबोधित कर उनके द्वारा पालित सद्गुरु कह कुमुदेन्दु अपने गण-गच्छ विवरणों में कहते हैं, ऐसा सूचित करते हैं । 11128 112
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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