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(सिरि भूवलय
हैं । यह वीर सेन, राष्ट्र अमोघ वर्ष नपतुंग के गुरु पूर्व पुराण कर्त्ता जिनसेन के (सु.सन् ८५०) गुरु थे, ऐसी जानकारी मिलती है। यदि यह सत्य है तो कुमुदेन्दु राष्ट्र कूट के समय काल के होंगें। अमोघ वर्ष का विचार सिरि भूवलय में जहाँतहाँ स्पष्ट रूप से चर्चित होता आया है (८-२५६, ९-१४६, ९-१८१, ९-१९५, १६-२१४ आदि) इसमें अत्यधिक ध्यानार्थ विषय यह है कि
ऋषिगलेल्लरु एरगुव तेरदिन्दले । ऋषि रूप धर कुमदेन्दु । हसनाद मनदिन मोघवर्षांकगे। हेसरि? पेळ्द श्री गीते।।
ऐसी स्पष्ट उक्ति है : इस उक्ति में लिखितानुसार माने तो कन्नड कवि कुमुदेन्दु श्री गीते (जैन भगबद गीता) में वर्णित सिरि भूवलय को अमोघ वर्ष नृपतुंग को निरूपित किया होगा, ऐसा मानना होगा । - सिरि भूवलय के प्रथम परिष्कर्ता कर्लमंगलम श्री कंठैय्या इतिहासकार एम. श्री कंठ शास्त्री इस समकालीनता को मानते हुए कृति और कृति कर्ता को सन् ७८३-८१४ के बीच मानते हैं । श्री कंठैय्या जी अपने विचार का समर्थन करने के लिए कुछ और आधारों को रखने का प्रयास करते हैं। लेकिन यह आधार प्रबल और प्रमाणिक नहीं है ऐसा कहा जा सकता है। भाषा की आधुनिकता को ध्यान में रखें भी तो अमोघवर्ष की समकालीनता को इतने में ही नहीं छोडा जा सकता है, ऐसा श्री कंठैय्या जी का मानना है। इसे छोडने का कोई साक्षाधार उन्हें या किसी अन्य किसी को ज्ञात नहीं हो रहा है। अभी के आप के एक लेखन में (अभिवंदना, १९५६, पृ ५६२-५८९) पुनः विस्तार पूर्वक चर्चा कर ईसा बाद ९३०-११२० के बीच भूवलय की रचना हुई होगी ऐसा मान ग्रंथ में अमोघ वर्ष, शिवमार (सन् ८१५) के उल्लेख के लिए परिहार को ढूँढना होगा, कहते
सिरि भूवलय के कर्ता और कुमुदेन्दु शतक के नायक व्यक्ति एक ही है ऐसा मानने वाले श्री के. श्रीकंठैय्या जी ने शतक के कर्ता देवप्पा कुमुदेन्दु