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________________ 10. अथ श्री संघपट्टकः . . (६७) निलयत्वाच्यालः सर्पस्तस्य वक्त्रांतरानं वदनमध्यं ॥ तत्र स्थिति अवस्थानं जुषते सेवते यस्तस्मिन् ॥ अर्थ:-हवे शुं बते जिनेंड मार्ग मिथ्यात्ववमे व्याप्त थवाथी विरलपणाने पाम्यो एवी आशंका करीने कहे . किल शब्दनो अर्थ श्रागल कहीशुं आ जगतमा प्राणीनो समुदाय, लोकोक्तिये कलिकाल अने जिनोक्तिए करीने दुःखमाकाल , ते हेतु माटे कालिकास एज दुःखमाकाल ते रूपी सर्प केम जे सकल श्रनाचाररूपी केरनुं स्थान डे माटे ते (कलिकालरूपी सर्प) ना मुलमा स्थिति करते बते. ___टीकाः-श्रयमर्थः-यथा कश्चिन्महानागमुखांतवर्ती व देष्ट्रानिस्सरनिरंतरगरलन्नरगलितचेतनत्वान्न किंचित् कृत्याकृत्यं वेत्ति ॥ एवं कलिकालवय॑ऽपि प्राणिवर्गस्तत्प्रनवकुशी खताकृतघ्नतामोहप्रलंननदंनाद्यनेकदोषपोषकलुषितांतःकरणत्वानात्मनो हिताहितमवस्यतीति अर्थः॥ श्रा लावार्थ ॥ जेम कोई पुरुप महा सर्पना मुखमा रयो ने ते सर्पनी दाढथी नीकलतुं जे निरंतर फेर तेना समूहथी जेनु चेतनपणुं गयु . ए हेतु माटे करवा योग्य अमे न करवा योग्य तेने कांश पण जाणतो नथी एम कलिकालमा रहेनारो प्राणीनो समूह पण ते कलिकालथी उत्पन्न थयुं जे कुशीलपणुं तथा कृतघ्नीपणुं, जोह, उगाइ, कपट ए आदि अनेक दोषो जेनुं अंतःकरण जरायुं बे, ए माटे पोतान हित. तथा अहित तेने नथी जाणतो. टीका जात छन तत्वेषु' जगवत्प्रणीतेषु जीवाजीवादित
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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