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________________ (४६) 49. अथ श्री संघपट्टका - जेमने एहेवा श्रीजिन पार्श्वनाथजी ते प्रत्ये, हर्ष पमाड्यो लोकनो समूह जेणे एवो, ने घणी में शक्ति जेनी एवो ने सुंदर ले स्वामी नक्ति जेनी एवो नागराज वखाण करीने अथवा स्तुति करीने पोताना स्थान प्रत्ये जतो हवो ॥ १०६ ॥ ए प्रकारे कथा संपूर्ण थई ॥ ..... टीका:-तदेव मिष्टदेवतास्तवमनिधायेदानी संघव्यवस्थो पदेशरहस्यं प्रतिपादनीयं तच्च योग्यस्य पुरुषस्य प्रतिपाद्यमानं ... साफल्यमासादयेत् । अयोग्याय तु दीयमानं प्रत्युत्तापकाराय स्यात् । यदुक्तम्-अप्रशांतमतौ शास्त्रतनावप्रतिपादनम् ॥ दोषायाचिनवोदीर्णे शमनीयमिव ज्वरे ॥ अर्थः-एवी रीते इष्ट देवतानी स्तुति कही हवे संघनी व्यवस्थाना उपदेशनु रहस्य कहेवानुं बे. ते रहस्य योग्य जीवने उपदेश कर्याथो सफलताने पामशे ने अयोग्य पुरुषने अपाये तुं कदाच उलटुं अपकार- कारण थाय. कह्यु बे के, जेनी बुद्धी स्थिर नथी ते जीवने शास्त्रना खरा तत्वनो उपदेश दोषy कारण थाय जे.जेम जेने ताव चढ्यो बे ते माणसने शांतिने बास्ते श्रापाती दवा दोषनुं कारण थाय तेम. टोकाः-श्रतोऽनिधेयमुपक्रममाण उपदेशरहस्यगणन. योग्यं श्रोतारं निरूपयितुमाह ॥ - अर्थः-ए हेतु माटे कहेवा योग्य वस्तुनो श्रारंज करता अनिधेय वस्तुनो उपन्यास करता बता ग्रंथकार उपदेश रहस्यने कहेवा योग्य श्रोता पुरुषतुं निरुपण करता बता कहे , एटले श्रोता पुरुषनां लक्षण कहे .
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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