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________________ * अथ श्री संघपट्टको anno Anim अपरितुष्यन् विवदिततदानंत्य चिख्यापयिषया निदर्शनांतरमाह ॥ अर्थः-एटले श्रा कुमार्गने विषे दोषनी आटली संख्या बे, एम जे कहेवा श्छे ले (एटलो अर्थडे) ते पुरुष समुजना जळनुं प्रमाण करे जे आ समुषमां आटवू जळ , एटखे अंजलि आदिकवमे कहेवा श्छे, जे समुज्नुं जळ बाटली अंजलियो प्रमाणे बे. समुजना जळनी प्रमाण करवानी श्वानुं दृष्टांत देखान्यु तेणे करीने उष्ट मार्गना दोष असंख्यातपणुं सिद्ध थयुं तेणे करीने संतोष न पामतां ग्रंथकार वळी ते दोषनुं अनंतपणुंडे एम कहेवानी श्चाए बीजुं दृष्टांत कहे . .. टोकाः-सकलगगनोलंघनं पदयां समग्रांतरिक्षांतप्राप. णं वेति पक्षांतरे विधित्सेत् चिकीत् ॥ अयं च निदर्शना ना. मालंकारः ॥ यत्र प्राकरणिकाप्राकरणिकयोः परस्परं संबंधा जावादुपमायां पर्यवसानं सा निदर्शनेति तनकणात् ॥ अर्थः-समस्त आकाशनुं नवंधन पगवमे करवा इले एवो डे, एम बीजा पक्षाने विष अर्थ थयो ए निदर्शनानामे अखंकार थयो. जे जगाए वर्णन करवा योग्य जे वस्तु तथा तेथी बीजी वस्तु ए बेनो परस्पर संबंध नथी ए हेतु माटे उपमाने विषे पर्यवसान थर्बु ते निदर्शनालंकारनुं लक्षण ले.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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