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________________ - अथ श्री संघपट्टकः । विषयतयोजयोरपि श्रुत्योः सामान्यविधिस्वं विशेषविधित्वं वा प्रसज्येत ॥ विनिगमनायां प्रमाणानावात् ॥ अर्थ:----प्रथमनो तथा त्रीजो ए बे विकल्प न ग्रहण कर. केम जे श्रागळ कहेली जे श्रुति तेथीज था लोक परलोकचें फळ सिक थशे. माटे अपराध विनाना पशुना वधने कहेनारी बीजी श्रुति ते वमे सयु. एटले बीजी श्रुति कहेवानुं शुं प्रयोजन ?वळी बीजो विकल्प पण नथी घटतो. केम जे बे श्रुतियोनुं फळ बरोबर नियमाये तो बे श्रुतियोनो पण सामान्य विधि अंगिकार करो अथवा विशेष विधि अंगिकार करो. केम जे एक श्रुति अंगिकार करवी एवा निश्चयनो अनाव के. टीकाः न चैतद् नवतोप्यनिमत।तस्मान्न हिंस्या दित्यादि. श्रुत्यैव सकलसत्वान्नयदानप्रतिपादनखुर्खलितया ऽनायाससा. ध्यार्थया स्वर्गादिफल सिद्धेः किमनया यागकारिणां पिशितलोलता मात्रा निव्यंजिकयाऽमुत्र नरकपातका रिएया बहुवित्तव्ययायास साध्यार्थया पशुवधश्रुत्येति ॥ अर्थः-एक श्रुति एटले न हिंसा करवी कोश्नी, अथवा यज्ञमां हिंसा करवी, ए श्रुति ए बेमांथी एक मानवी एक न मानवी एवो तो तारो पण मत नथी. ते माटे समस्त प्राणी मात्रने अजयदान प्रापवानुं जे प्रतिपादन करवं तेमां दरिज एटले सर्वथा अजय दान कहेवा न समर्थ थती एवी ने प्रयास विना साध्य ने अर्थ जेनो एवी ने हिंसा करवी इत्यादि श्रुति तेणे करीनेज स्वर्गादि फलनी
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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