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________________ (१७२) 48 अथ श्री संघपट्टक स्वरूपवत्पर रूपेणापि सत्वात्तद्रूपापत्या स्वरुपापगम प्रसंगःअनेक ... रुपत्वान्युपगमे वा जगद्वैचित्र्यनंगप्रसंगात् ॥ अर्थ-हवे सिद्धांती अन्यदर्शनीना एकांतमतने खंगन करे जे एकांत मत एज अति श्रेष्ठ जे एम तमारे न बोलवूकेमजे जो एम कहेतो होय तो तारा वांबितने जणावनार बे विकल्प प्राप्त थाय , ते कया. तो पदार्थ मात्र सजप ने अथवा असदूप ले ए तने प्रश्न पूबीए बीए. तेमां जो सदूपज पदार्थ मात्र २ एम प्रथम, विकल्प अंगिकार करे तो आ प्रकारे दूषण प्राप्त थाय जे एकांतपणे सद्रूप पदार्थ बते घटना स्वरुपनी पेठे पटना स्वरुपर्नु पण सद्रूपपणुंडे तेथी स्वरूपापगमनामा दोषनी प्राप्ति थशे एटले घटपटना स्वरूप, एकपणुं थशे. जो अनेक रूपपणानो अंगिकार करशे तो जगतनुं जे विचित्रपणुं तेना नाशनो प्रसंग थशे ए हेतु माटे. :: टीकाः-एकस्मादेव घटादेः सकलपदार्थकार्यकारणो पपत्तस्तथा च घटो जलहरणवत्प्रावरणाद्यपि पटादिकार्य कुनि चैवं ॥ तस्मान सद्रूप एव जावाः ॥ नापिहितीयः ॥ ए. कांतासत्वस्वीकारे घटस्य पररूप वत्स्वरुपेणाप्यसत्वेन खरवि.. पाणवदत्यंतानावप्रसंगात् ॥ तथा च नोदकार्थी घटार्थ प्रयते त तस्यात्यतासत्वेन समस्तार्थक्रियाविरहात् ॥ - अर्थः-एक घटादिक पदार्थथी सकळ पदार्थनो कार्य '- M .
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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