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________________ 49 अथ श्री संघपट्टक: (AAR) अर्थः-ए प्रकारे अदेव जेवाने विषे देवबुद्धि ने देव जेवाने विषे श्रदेवबुद्धि ए प्रकारे मिथ्यात्वनुं रूप प्रतिपादन करीने अगुरुने विषे गुरु बुद्धि करवी इत्यादि मिथ्यात्व स्वरूप ने तेने कहे बे. जे मोटा मूर्खना समूह ने तेने सर्वानी पेठे आचरण करे ले एटखे सर्वज्ञ जेवा जाणे . पोते अंगिकार करेला गबमां रदेलो यतिनो समूह तेने शानि विद्वान पंमित जाणे जे अमारा गबना यति लोको शुं शुं शास्त्र नथी जाणता? सर्व शास्त्र जाणे इत्यादि। ... टीकाः तत्वज्ञ षट्दर्शनतकर्कर्कशधियं स्वपरसमय नियमिं सूरिविशेषं अज्ञीयति अज्ञमिव बालिशमिवाचरति ॥ यथा न किंचिदप्येष जानाति ॥ अयमर्थः॥ नहि मूर्खशिरोमणेः सर्वझेनोपमानं युक्तं ॥ नापि तत्वज्ञस्याझेन ॥ अत्यंतमनुरुपत्वात् ॥ परं स मिथ्याज्ञानादेवमपि करोति ॥ अर्थ:---वळी तत्वनो जाण एटले बदर्शन संबंधी तर्क वि. चार करवामां तीखी जेनी बुद्धि बे, नावार्थ ए ले जे पोताना द. निनां जे शास्त्र तथा बीजा दर्शननां जे शास्त्र तेनो निर्णय करवामां सीमारुप, ए जेवा बीजा को नहि एवा सूरि विशेषने एटले एवा कोश् श्राचार्यने अज्ञानीनी पेठे जाणे हे एटले एप्राचार्य कांश पण जाणता नथी आ अर्थ सिकथयो. जे मुर्ख शिरोमलिनी सर्वज्ञ साथे जे नपमा करवी ते युक्त नथी. ने तत्वज्ञ पुरुषनी श्रज्ञानी साथे उपमा करवी ते पण युक्त नथी. केम जे अत्यंत श्रमोमपणुं हे ए हेतु माटे, परंतु ते मिथ्याज्ञानथी एम पण करे बे.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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