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________________ अथ श्री संघहरुः टीका:- स्मृत्वा प्राक्तनं वैरमन्वीशं मेघमालिना ॥ श्र मर्षोन्मत्तालाल कुटिशालिना ॥ ६२ ॥ प्राग्जन्मनिचितस्वैरवैर निर्यातनाम ॥ विदधामीत्युपत्रष्टुं वक्ररथेन प्रचक्रमे ॥ ६३ ॥ युग्मम् ॥ अर्थ:- स्यार पछी मेघमाली जगवान प्रत्ये केटलाक ज वयी अनुसरतु जे पूर्वनुं वैर तेने संजारीने क्रोधथी उंच उपकतुं जे विशाल ललाट तेने विषे चकुटी करीने शोभता एवा ते देवे एम विचायुं जे हुं पूर्वजन्मने विषे संचय करेलुं पोतानुं वैर ते प्रत्ये निर्यातना करूं, एटले वैरनो बदलो वालुं श्रर्थात् वैर वाळु. एम धारीने वकपणे उपद्रव करवाने श्रारंभ कर्यो. ॥ ६२ ॥ ६३ ॥ ( ३४ ) टीका:- प्रेख निशात विशिख शिखासमनखांकुरान् ॥ मुखनिर्यदूधनस्वान विदीर्ण गिरिकंदरान् ॥ ६४ ॥ दिग्गजैयों मुत्पित्सूनिव सिंहान् महीयसः ॥ विनिर्ममे जगन्नेतुरुपरिष्टात्स दुष्टधीः ॥ ६५ ॥ युग्मम् ॥ अर्थः- चलकता जे तीक्ष्ण बाण तेनी शिखा सरखा बेनखना अंकुरा (ख) जेना ने मुखी नीकलता मेघ जेवा गंजीर क काकाना शब्दे करीने करुका करी (फामी) ठे पर्वतनी गुफा जेमणे एवा, धने दिग्गज (हाथी) नी संघाते जाणे युद्ध करवाने उबलता होय ने शुं ? एवा मोटा सिंहने ते दुष्टबुद्धि देवे जगस्वामी श्री पार्श्वनाथजी उपर विकुर्व्या ॥ ६४ ॥ ६५ ॥ टीका:- अवग्रहं प्रनोस्तेऽथ स्प्रष्टुमप्यसहिष्णवः ।। अभूव- निष्फला यह निर्धनानां मनोरथाः ॥ ६६ ॥ अर्थः- सिंह प्रजुन श्रवग्रह स्पर्श करवाने समर्थ न यया अर्थः ते
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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