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________________ 8. अथ श्री संघपटकः - (३३) . अर्थ:-त्यारपळी जगतना नाथ श्रीपार्श्वनाथजी गायक सोकोये गान कर्या बतां मोटा महिमाए सहित जेम इंऽ श्रमरावती नमरीमा प्रवेश करे तेम पोतानी नगरी प्रत्ये प्रवेश करता हवा ॥७॥ .: टीकाः-ततो लोकांतिकैर्देवैः प्रजुरागत्य बोधितः ॥ नगवंतं स्वयं मुर्त्य वरीतुं प्रहितैरिव ॥५॥ अर्थः-त्यार पड़ी मुक्ति कन्याए पोतानी मेले जगवंतने वरवाने मोकल्या होय ने शुं? एम लोकांतिक देवताउँए श्रावीने प्रजुने बोध को ॥ एए॥ टीकाः-स्वर्णस्तोमस्य वर्षेण तापनिर्यापणक्षमः ॥ जगत्यास्तर्षमाकर्षन् घनाकृतिरदीकत ॥ ६॥ अर्थः-सोनयाना समूहना वरसवे करीने लोकना संतापने नाश करवाने समर्थ अने तृष्णानो नाश करता अने मेघनासरखी डे श्राकृति जेनी एवा नगवान दिदा लेता हवा. एटले वार्षिक दान थापीने दीक्षा लीधी. मेघपके मेघ सारा जखनी वृष्टिए करीने पृथ्वीना तापने नाश करवामां समर्थ ने तरशने मटामनार जे. ६० टीकाः-श्रथाश्रमपदोद्याने कदाचिदिहरन प्रजुः ॥ बस्यौ मौनं समास्थाय प्पानध्यानैकतानधीः ॥ ६१॥ . अर्थः-त्यारपती कोश्क वखत विहार करता थाश्रमपद नामे उद्यानने विषे, वृति पामता ध्यानने क्केि एकतान अश्बुद्धि जेमनी एवा नगवान् मौनपणुं धारश करी उता रहेता. हवा. ६१ 4
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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