SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२) अब भी संघपार: anwANAMA अर्थः-जो प्रजु अहीं न आव्या होत त्यारे तो जन्माराना अंध पुरुषनी पेठे मगले मगले स्खलना पामतो था लोक मोही, संसाररूप कूवामां पमत एटल्ले प्रजुए जो अहीं श्रावीने ए तप कुष्ट न करी देखामयुं होत तो लोको मोहथी जूगमा साचुं मानीने संसार रुप कूपमां पमी मरत ॥ ५४॥ टीकाः-ततो विनो गुण स्तोत्र मसहिष्नुः स तापसः ॥ ततो देशादपक्रांतः प्रकाशा दंधकारवत् ॥ ५५ ॥ अर्थः-त्यार पठी ते तापसथी जगवाननी गुण स्तुति सहन न यशए कारण माटे जेम अजवालाथी अंधारुं मासे तेम ते देशथी नागे ॥५॥ टोकासदर्कोपि संपर्कोविन्नो दुःखाय केवलम् ।। तस्या जव दुलूकस्य प्रकाश श्च जास्वतः ।। ५६ ॥ अर्थः-सारु उत्तर फल जेनुं एवो पण नगवाननो संबंध ते केवल ते तापसने पु:ख जणी थयो. जेम सूर्यनो प्रकाश घूमने ॐख जगी थाय तेम ॥ १६ ॥ टीका:-ततः कृत्वा तदज्ञानात् जरवः कमठ स्तपः ॥ मेधमालीतिविबुधो ऽजनि स्तनितनामसु ॥ ५ ॥ .अर्थ:-त्यार पठी ते वृद्ध कम नामे तापस श्रज्ञानथी तप करीने स्तनित नामे दशमी निकायने विषे मेघमाली नामे देवता थयो. ॥५॥ -- टीका:-गीयमानो जगन्नाथो गाथकै नगरी ततः॥ विवेश पेशसस्थेम्ना बृत्रहेका मरावतीम् ॥ २७॥
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy