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________________ 8. अब श्री संघपट्टकः रहस्यमवस्यति ॥ अहमेव सकलश्रुतपारावारपारदश्वा ॥ ततोयमहं ब्रवीमि समुक्तिमार्ग इति ॥ अर्थः-वळी श्रातो अतिशेज मोटुं कष्ट डे इत्यादि पूर्वनी पेठे जाणवू ते पूर्वे कह्यो एवो पोतानी श्छा प्रमाणे चालनारो कोशक आचार्य जे ते सारा ज्ञानदर्शने युक्त ने ज्ञानदर्शन चारित्र ले लक्षण जेनुं एवो जे मुक्तिमार्ग तेने विषे प्रवर्तेला ने मुक्ति मा. र्गना जाण एवा जे सुविहित साधु तेने इसे ले जेम अज्ञानिने अपमान सहित हसे ले तेम ते वात कहे जे जे अहो था अगोतार्थने मूर्ख शिरोमणि एवा डे ने सिद्धांत रहस्यने नाश करनारा ले ने हुंज समस्त सिद्धांत समुन्नो पारगामीळ माटे हुँ जे बोलुंडं एज मुक्ति मार्ग डे इत्यादि. टीकाः-किमित्येवमुपहसती यत आह ॥ तहाक्यानभुवर्तिनोयतस्ते गीतार्थ । नुत्सूत्रं मुक्तिपथप्रतिपादकं तद्वाक्यं नानुरुध्यंत इति ॥ अतएव दुःखमासमयजिनशासन नविष्य दशुननाव सूचक दुस्वप्नाष्टकांतः स्थवानरफलं विवृएवताहरि जासूरिणानिहितं ॥ अर्थः-हवे ए केम एम उपहास कर ले तो त्यां कहे जे जे जे हेतु माटे ते गीतार्थ जे ते उत्सूत्र एवं मुक्ति मार्गने प्रतिपादन करनार तेमनुं जे वचन तेने अनुसरता नयो ते हेतु माटे एज का. रण माटे उखनासमयने विवे जिन शासनमां थशे एवा जे अशुन नाव तेनी सूचना करनार जे आठ मार्ग स्वप्न तेन मध्ये वानर फळ स्वमनो विस्तार करता हरिन सरिए कडु डे के.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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