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________________ (-५३४ ) 4 अथ श्री संघपट्टकः -- जना करीने ते वात चालता प्रसंग साथे हवे योजना करे बे. जे तो मोटुं कष्ट बे जे साचा मारगने इच्छनाराने सन्मार्गने कुमार्गमा विभागने जाणता नथी माटे श्रति नोळा एटले अांधळा लो. कमे जन्मांध पुरुष एटले सिद्धांतना रहस्यनो लेशमात्रने पण न जाणतो सर्वथा श्रगीतार्थ पुरुष जे ते कदापि ए श्रगीतार्थ पुरुष पण गीतार्थनी सोबत कोइ प्रकारे मोक्ष मारगने कड़ेवा चतुर दशे एवी आशंका धारीने ते जगाए विशेषण कहे बे. टीकाः - वैदेशिको ग हिताचारत्वादाजन्मागम निकष विडुरगीतार्थ मुनिपुंगव संगमात्रवर्जितः ॥ एषचाधुनिक डुः संघ प्रवरो निःशंकं निःश्रेयसपथप्रत्यर्थिमार्ग प्रथनदी कितो यथानंद शिखामणिः कश्चिदाचार्यो मंतव्यः ॥ कांतारे महाटव्यां प्रदिशति श्रयमेव मडुपदिष्टो मोक्षमार्ग इति प्रज्ञापयति श्रभीप्सितपुराध्वानं मुक्तिमार्ग उत्कंधरो दर्शिताकार विकारः ॥ अर्थः- जन्मांध पुरुष केवो बे तो परदेशी एटले कोइक निंदित श्राचारवाळो बे, माटे श्रागमनी कसोटीना जाए गीतार्थ मुनिराजना संग मात्रथी रहित एवो आ हाल कालनो दुराचार | संघ मध्ये श्रेष्ठ ने निःशंकपणे मोक्ष मार्गनो शत्रुरूप जे मार्ग तेनो विस्तार करवाने दीक्षावाळो थयेलो एवो ने पोतानी वामां आवे तेम चालनार जे पुरुष ते मध्ये शिरोमणि एवो कोइक आचार्य जावो. ते मोटी खटवीने विषे कड़े बे जे आ हुं कहुं हुँ, उपदेश कलं बुं एज मोक्षमार्ग बे. एम अहंकारनो विकार देखामाने मोक मार्ग देखाये बे.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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