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________________ - मय श्री संकपाका Mamme बंतुं पण मन हिंदोलानी पेठे चंचळ थाय ने एमातीपर्य तो पूर्वनी पे जाएवं जे नाम मात्र जैनी ले ते सर्व जगाएट पसरेला में ए हेतु माटे था समीप रहेला एम प्रत्यक्ष निर्देश कर्यो ? ननुः थव्ययनो अक्षमारुप अर्थ एटले अमो ए विपरितपणाने सहन करता नथीं अथवा पासे रहेला मित्रोनुं संबोधन कहेनारों ननु शब्द जाणवो ए लिंगधारी तो सर्व प्रकारे जिनमार्गना वैरी के एटसे जगवंतना मार्गना शत्रु ने पण कोइ प्रकारे जिन मानने अनुकूल नापी ... टीका:- जैनदर्शनोपहासतदनिमुखवैमुख्यापादनादिका जिनसाशनानुपचयहेतुत्वेन वस्तुतस्तेषां तडछेदकत्वात् ।। येवांचापसधेनः शशधरकर विशदे जगवलासने लोकोपहास कि पर्यासादयो दोषाः प्रापुःष्यंति तेऽनंतसंसारिणः सिद्धांते प्रति पादिता महापापीयस्त्वात् ॥ यमुक्तं ॥ दोसेंणजस्स अयसो आयासो पवयणेय अग्गहणं ॥ विप्परिणामो अप्पच्चोयकुबाय नप्पज्जे ।। पवयण मणुपेहंतस्स निबंधस्सतस्स लुहस्स ॥ बटु मोहस्स जगवया संसारोपंतश्रोन्नणिों ॥ तत इत्येतत्पदमग्रे वृत्तादौ संत्स्यतः इति वृत्तध्यार्थः ॥२५॥ - अर्थः-नसटा जैन दर्शन- उपहास. करावनारा देने के
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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