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- मावी संपादक *
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पल्प जिनमासनस्थ समावि विमिन तथारू वैशमव्यवहारं बीस्य कथंकारं न कुर्यु रित्त्वर्थः।
अर्थः-मत्सरि पुरुष पोताना स्वनावेज पोतानी मर्यादाने न घटतो एवो प्राचार देखीने सर्वनुं उपहास करे ने तो सर्वोपरि जे जिनशासन तेनुं वर्तमानकाळे उपहास करे तेमां तो शुकडेवू तेमां पण लिंमधारीजनो ते प्रकारका हिंसक व्यवहार देखीने केम उपहास न करे एटलो अर्थ .
टीकाः-तथा श्रुत्वापाकये येषां स्थिति अन्ये चपरेड जिमुखाः शेषदर्शनेन्यः सकलोपपत्तिकलितमिदं जैनदर्शनं यत्योप्यत्रदर्शने झांतात्मानः क्रिया निष्ण श्चोपलज्यते ॥ ततोऽ स्माकमपीदमंगीकर्नु मुचित मिति चेतस्यज्युपगम विषयोत जिनशासना स्तेपि भासतां तदपरश्त्यपेरर्थः ॥
अर्थः-वळी जे विंगधारीडनी स्थिति देखीने पीनामा हटले जैन दर्शनने सन्मुख अयेखा लोक पप बिमुख भार पर अनळ संबंध डे ते एम जाणता इता जे सर्व दर्शनी साड कळानी सिद्धिये सहित था जैन दर्शन ने मजे बापाला यति पण शांत चित्तवाळा डे तथा क्रियानिष्ट देखाय ने ए हेतु माटे मारे पक्षा दर्शन श्रमिकार कर घहित एक पोताना चिबमे बिन सासननो अंगिकार करीमे रखा एकावासो पोकते विमुख बाब ले सो वीजा पाय मुमा से शुं कहां हम पारिशब्दको