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________________ ( m) अथ श्री संघपटक AAN W न्युद्धतानि बहुजनबदनस्य मुअपितुमशक्यत्वा बिशांकलायो प्रटानि सर्वत्राऽस्खलितानीतियावत् ॥ अर्थः-एम पूर्वे कह्यां एवां आदि शब्दथी बीजां पण बहुधा एज प्रकारनां विमंबणाने जलावनारां वचन: ग्रहण करीएबीए ते हेतु माटे घमा उत लोकनां वचन थाय बे केमजे बहु लोकना मुखने रोकवा नथी समर्थ थता माटे निःशंकपणे अतिशय प्रसिक कोई जगाए स्खलना न पामतां एवां लोकनां वचन ए लिंगधारी. नने देखीने उत्पन्न थाय . वीकार-मोपहासान्युत्प्रासनांजि क्यासि वचनानि येषां ते मचायुनवेचुर्लोकाः प्राकृतजनाः कुतोर्थिकनाविता जैन पपल्स रिसः प्रेदय साक्षात्कृत्य येषामिति पदं तूर्यपाद स्थित कलं वासयंदीपयति ॥ लेनः येषां स्थिति मित्यादि संबंध्यते॥ अर्थः पटले जे लिंगधारीनने साक्षात देखी कुतीर्थनी को भावना बळगी एवा प्राकृत मत्सरी लोक उपहास सहित के वचन ते जेमनां एवा थाय ने येषां ए पद या काव्यना चोधा वस्थामा स्यु बे. पण सकल वाक्यने दीपावे ते. हेतु मादे जे विं मधारी उनी अघटित स्थिति देखीने लोक उपहास करे के पर संबंध थाय . · टीका:-स्थिति यत्यनुचितमसमंजसमाचारं ॥ स्वरूपेणैव बावन्सत्सरिणः सर्कस्याप्युपहासंकुति किंपुनः संमति निरतिश
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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