SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७ अथ श्री संघपट्टकः -- ( ४५५ ) एम केम हो तो कहे बे के त्यां ज्ञानादिकनो जाव होतो नथी, माटे एम बे, कोइ बोलशे के त्यारे कारणमां कार्यनो नपचार केम नहि शके केमके तेमने जोइने पण कोइने ज्ञानादिक उपजे बे माटे ते पण जाग्राम थशे त्यां श्राचार्य जवाब आपे बे के एम जो जावग्रामपं यतुं होय तो तारा हिसाबे निहृवो पण जावग्राम गाशे, माटे यावी ए विपरीत वात कोण कहे ? टीकाः ननु तथापि मिथ्यादृक् परिगृहीतचैत्याना म. नावग्रामत्वमेवोक्तं नत्वनायतनत्वं ॥ अजावयामाऽनायतन शब्दयोः पर्यायत्वानावा दिति चेन्न || जावग्रामशब्दस्य ज्ञानाद्युत्प तिकारणाद्यर्थत्वे नायतन पर्यायत्व सिद्धौ तद्विपक्षस्यार्थादेवानायतन पर्यायत्वसिद्धेः ॥ अर्थः- लिंगधारी शंका करे बे जे ए प्रकारे शास्त्र वचन ले तो पण मिथ्या दृष्टिए ग्रहण करेला जे चैत्य तेमने श्रावयामपशुंज कयुं पण अनायतपणुं तो नयीज कर्तुं ने अनावग्राम तथा अनायतन शब्द एबेने पर्यायपणानो अभाव बे ए हेतु माटे हवे सुविदित कहे वे जे एम जो तमे कहेता होतो ते न कहेतुं. केमजे जावग्राम शब्दने ज्ञानादिकनी उत्पत्ति थवारूप कारणादिकना अर्थ पणे करोने श्रायतन शब्दना पर्यायपणुं जेम सिद्ध थाय बे तेमज जावप्रामै शब्दथी उलटो जे अजावयाम शब्द तेने पण आयतन शब्दथी नलटो जे अनायतन शब्द तेने पण पर्यायपणुं सिद्ध यशेज. दीकाः एवंच जगवत्कल्पनायार्थ मीमांसनेन कथं मि.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy