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________________ (१४) -19 अब श्री संघपटक - टीका:-अमु मेवार्थ नावग्रामविचारप्रकमे शंकोत्तराच्या मूचतु स्तत्र जगवंतो कल्पनाष्यर्णिकारौ ॥नाणाइतिगं ना.. को जय एएसिं नुप्पत्ती लावग्रामो नाणदंसण चरिताणि ॥ ज वा एएसि नप्पत्ती हव॥ केय ते जनप्पत्ती हव ॥ उच्यते ॥ तिस्थगरा जिणचुइसदसजिन्ने संविग्ग तह असंविग्गे ॥ सारूविय वयसपमिमान नावगामा ॥ जा संमिनाविया पमिमा इयरी न नावगामो य ॥ जा. वो जश्नस्थि तहिं नणु कारणकजनवयारो ॥ थाह कहंमिल हिहिपरिग्गहियान नावगामोन हव ॥ नच्यते ॥ तत्र ज्ञानादिनावो नास्ति ॥ श्राद ॥ननुकारणे कार्योपचार इति कृत्वा।। तानवि दहणं कस्सवि संमुप्पान्होजा तो कहता जावगामो न जव ॥ श्रायरि नग॥ एवं खुनावगामे निहगमाईविज.. ह मयं तुनं ॥ एय मवच्चं कोणुहु वयविवरी वजाहि ॥ अर्थः-श्राज वात नगवान् कटपनाष्यकार तथा चूर्णिकारे जावग्रामना विचारना प्रस्तावे शंका अने उत्तरवमे जगावेली ते श्रारीते ले के ज्ञानादि त्रण नावग्राम कहेवाय . अथवा जेनाथी एमनी उत्पति थाय ते पण नावग्राम कहेवाय. वारुं त्यारे कयी कयी बाबतोथी एमनी नत्पत्ति थाय ले तो कहे बे के तीर्थकर, सामान्यकेवळि, चनदपूर्वी, पूर्वधर, संविग्नसाधु, असंविग्नसारुपिक, व्रतधारीश्रावक, समकिती श्रावक तथा प्रतिमा ए बधाथी तेमनी उत्पनि थाय .त्यां प्रतिमा जे सम्यग्दृष्टिनी परिग्रहीत होय तो जावणाम के, पण मिथ्यादृष्टि परिग्रहीत होय ते नावग्राम नहि थाय. -
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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