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________________ (४५०) 4. अथ श्री संघपट्टकः - NAMMAM रित्राणि नावग्रामो येन्योवा ज्ञानादीनामुत्पत्ति रिति॥अथ के. ते येन्यो ज्ञानाद्युत्पादः ॥ अवहिती नूय श्रूयतां ॥ . अर्थः-लिंगधारी प्रोजे जे ए लावग्राम कीयो के जेना विना प्रतिमानुं अनायतनपणुं तमो सिझ करो जो हवे सुविहित बोध्या जे जो एम तमे कहेता होतो तेनो नत्तर कहीए बीए में ज्ञान दर्शन तथा चारित्र ए नावग्राम के जेथी अथवा जेथी ज्ञानादिकनी उत्पत्ति थाय ते नावग्राम कहीए हवे लिंगधारी पूरे ने जे जेथी ज्ञानादिकनी उत्पत्ति थाय एवा ते कोण जे त्यारे सुविहित वोट्या जे तुं सावधान था सांजळ उत्तर आपीए बीए.' टीकाः-तीर्थंकर मनः पर्यायावधिज्ञानिन चतुर्दशदशनवपूर्वधराः संविग्नास्तत्पालिकाश्च सारूपिणो गृहीताणुव्रताः प्रतिपन्नसम्यक्त्वाश्च श्रावकाः अहत् प्रतिमाश्च ॥ तीर्थंकरादयो हि देशनादि छारेण नव्यसत्वानां ज्ञानाद्युत्पादहेतुत्वेन नवंति नावग्रामः॥ __ अर्यः-जे तीर्थंकर तथा मनः पर्याय शानि तथा अवधि ज्ञान तथा चनद पूर्वधारी तथा दश पूर्वधारी तथा नव पूर्वधारी तथा संविग्न तथा तेमना पक्षपाति तथा सारूपी तथा ग्रहण कर्यु ने अणुव्रत ते जेमणे तथा ग्रहण कयु डे समकित जेमणे एवा जे श्रावक तथा अरिहंतनी प्रतिमा तथा तीर्थंकरादिक पण देशना. दिक हारे नव्य जीवोने ज्ञानादिकनी नुत्पत्तिनुं कारण जे ए हेतु माटे नावनाम ए सर्वेने कहीए बीए.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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