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________________ - अथ श्री संघपट्टक - ( ४४९ ) अर्थ - नेजे एक सूत्रमा देखामेलां तेमनी प्रवृत्ति तथा निवृत्ति ते वे संघाज थाय एम व्याकरण जवेला विद्वान लोकोनो न्याय के ए हेतु माटे एटले पूज्य तथा अपूज्य ए वे प्रकारनां चैत्य एक सूत्रमां संघाथे गणान्यां होय त्यारे सर्वे पूज्य थाय अथवा सर्वे प्रपूज्य चाय माटे पूजवा लायक पांच प्रकारनां चैत्य एक सूत्रमां गणाव्यां बहु पूज्य जे लिंगधारीए ग्रहण करेलुं अनायतन चैत्यते जुडुं गणान्युं माटे ते पूज्य चैत्यथ। अपूज्य चैत्य जुड़ गणावतां शास्त्रमां कहेली जे पांचनी संख्या तेनो विरोध नहि घ्यावे. टीकाः नन्वेतावता कुतीर्थपरिगृहीताई चैत्यानां सिध्यस्वनायतनत्वं नतु स्वयूथ्य पार्श्वस्थादिपरिगृहीताना मिति चेन्नतेषामपि सिद्धांतोक्तेना जावग्रामत्वेन तयात्वसिद्धेः ॥ - अर्थः- लिंगधारी श्राशंका करे बे जे या जे तमोए कयुं ते करीने कुतीर्थिक पुरुषोए ग्रहण करेलां जे अरिहंतनां चैत्य तेनुं अनायतनप सिद्ध थाय पण पोताना युथना एटले पोताना वर्गना जे पासथ्यादिक ते ग्रहण करेलां जे चैत्य तेमनुं अनायतनप तो न त्यारे सुविहित मुनि उत्तर आये बे जे जो एम तमारे कहेवानुं होय तो ते न कहेतुं म जे सिद्धांतमां जावग्राम को बे तेणे करीने ते लिंगधारीए ग्रहण करेला जे चैत्य तेनुं पण अनायतन पहुं सिद्ध थाय बे. टीका ननु कोर्य जावमा मोनाम यदनावातिमांना मं नायतनत्वं प्रसाध्यते जवतेतिचेत् ॥ उव्यते ॥ ज्ञानदर्शनबा ૫૭
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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