SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४३४ ) * मय श्री संघपट्टकः जता ने पांच प्रकारना जे ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचार तेवमे शोजता एवा जे सुविहित साधु ते केमजे शुभ नावरूप एवा ने वंदनादिक वने जव्य जणाता एवा जे जे सत्पुरुष तेमने ज्ञानादि लान थवानुं कारणपहुं एमां रधुं ने ए हेतु माटे. टीका: - यडुक्कं ॥ श्राययपि य विद्दन्वे जावेय होइ. नायचं ॥ दबंमि जिणहराई जावं मि य होइ तिविदंतु || टीका:- ननु जवत्वेवं द्रव्यन्नावजेदेना नायतनस्वरुपं तथापिजिनजवनं न क्वचिदनायतन मजिह्नितं ॥ सत्यमनौपाधिकमनायतनायतनयोः स्वरूपमिदमुदितं । श्रोपाधिकं त्वनायतन स्वरूप मेवं प्रतिपादित मागमे ॥ यत्र गतानां ज्ञानादित्रयव्याघातो जवति तद्वर्जयेन्मतिमान् ॥ श्रथ कगतानां तयाघ्रात इतिचेमुच्यते ॥ अर्थ :- लिंगधारी आशंका करे बे जे द्रव्यजाव नेदे करीने ए प्रकारे अनायतननुं स्वरूप हो, तो पण को जगाए जिनजवन छानायवन क नथी त्यारे सिद्धांती बोले ठे जे ए वात सत्यबे पण उपाधि थकी थयुंजे नायंतन ने श्रायतन ए बेनुं स्वरूप या प्रकारनुं बे शास्त्राने विषे तेमां उपाधि अनायतनना स्वरूपनुं या प्रकारे प्रतिपादन बे जे, जे जगाए गयेला ने ज्ञानादि त्रणनो विधात थाय तो ते स्थानको बुद्धिमान् पुरुषोए त्याग करवो ने हवे तुं जो एम कहेतो होय जे क्यां गएला ने ज्ञानादिकनो विघात थाय एम. जो
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy