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________________ 8 अथ श्री संघपट्टका AAmawwwwwwrahe नवी करता केम जे श्रमानो जंग तथा मत्सरनी नत्पत्ति इत्यादिक कोषनो प्रसंग थाय ए हेतु माटे. वळी सिद्धांतना आदरवाळा जे सर्व यतिजन तथा श्रावक ते अनुक्रमे व्याख्यानादिकने विषे तथा चैत्य चिंताने विषे अधिकारी ने एटले योग्य जे. एटले सिद्धांतमा कहेला विधिनुं बहुमान करनार एवो जे यति ते व्याख्यान करवामां अधिकारी तथा एवो जेश्रावक ते चैत्यनी चिंता करवामां अधिकारी ने सिद्धांत विधिवमे रहित एवो जे साधु थादिक ते व्याख्यान आदि करवामां अधिकारी नथी एटलो अर्थ में ने त्रण चार लोकनी दृष्टिए एटले विधिने विषे तत्पर एवात्रण चार श्रावकनो दृष्टिए था जगाए चैत्य अव्यनी वृद्धि आदिक चैत्यचिंता ते वारवा योग्य डे पण एकाकी निस्पृह पुरुषने पण ए काम करवा योग्य नथी शाथी के लोकापवाद आदिक दोषनी प्राप्ति थाय ए हेतु माटे ए प्रकारे प्रसंगे श्रावेलां बे काव्य तेनो अर्थ या प्रकारे करी देखायो. टीकाः-एवं चैवं विधः सिद्धांतानिहितो विधिर्यत्र वर्तते तद विधिचैत्य मनिश्राकृतं अव्यतायतनं चोच्यते इतिजावतश्रायतनंतु ज्ञानादित्रय ब्राजिष्णवः पंचविधाचारचारवः सुविहितप्ताधवः ॥ शुजनावरूपागां सतां वंदनादिनानव्यानां ज्ञानादिलाज हेतुत्वात् ॥ अर्थः-ए प्रकारनो सिद्धांतमां कहेलो जे विधि ते जे जमाए करते ते विधिचैत्य अनिश्राकृत अव्यथो आयतन कहीए मेय ने जाव थकी आयतननो ज्ञान दर्शन चारित्र ए त्रणवमे शो ૫૫
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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