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________________ -18 अथ श्री संघपट्टक - ( ४३१ ) ज्ञातिना श्रावक या जगाए जगवद् बिंब संबंधी दक्षिणा दिक स्नात्र करवामां अधिकारी बे पण बीजी जातना अधिकारी नथी. इत्यादि ज्ञाति कदाग्रह ए बे जे अमोए तथा श्रमारा वृद्धोए श्रा जिनमंदिर कराव्यं वे ते माटे प्रमारा गोत्रनाज या सर्व देवद्रव्य मानकादिकनी चिंता करवामां अधिकारी ने पल बीजा अधिकारी नथी इत्यादि. टीका: सच विधिचैत्ये न संगतः सर्वेषामेव धार्मिकश्राकानां गुणवतां तत्र सर्वाधिकारित्वा निधानादन्यथा जात्यादिनि श्रयाप्य निश्राकृतत्वानुपपत्ते रिति ॥ अर्थः-- ए प्रकारनो जाति ज्ञाति संबंधि कदाग्रह विधि चैत्यमां नथी, केम जे सर्व धर्मवंत, गुणवंत एवा श्राषकनोज त्यधिकार एम कयुं बे ने जो एम न होय तो ए विधिचैत्यने पण जात्यादिकनी निश्राए करीने निश्राकृतपणानी सिद्धि न थाय एटले ए विधिचैत्य निश्राकृत न कहेवाय. टीकाः नच श्राद्वलोकस्य तांबूलन क्षणमस्ति ॥ नगवदाशातनापत्तेः ॥ तांबूलमिति च तंबोलपाणेत्यादि गाथोक्तानां पानभोजनादीना मुपलक्षणं ॥ तथा ॥ गब्दिकाद्यासन मप्याशातना विशेषत्वाडुपलक्ष्यते ॥ इत्येवं प्रकारा श्राज्ञावि धिः ॥ अत्रैषा निश्रितेकस्यापि यत्यादेर्निश्रया अधीनतया विनाकृते विधिकृते श्रुतोक्त विधि निष्पादिते श्री जिन चैस्थालये जिनजवन इति ॥
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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