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Man) . अथ भी संघषका है . अर्थः-ए विनाना सर्व पण क्रिया कलापने अंध तथा मू. कनो सरखापणानी प्राप्ति थाय ने ए हेतु माटे त्यार पठी गुरु भक्ति इत्यादि पदनो इंछ समास करवो. वा अव्ययनो समुच्चयने विषे अंर्थ करवो ए सर्व जिनगृह आदिक तथा दान श्रादिक तथा गुरु जक्ति श्रादिक अनुष्टान जे बहुमान सहित थादर कयु ने ते श्रा प्रवचनने विषे अंनिमत नथी. एटले मानवा योग्य नथी. एम संबं. ध करवो शाथी के ते सर्व कुमत जे अन्य दर्शनी तेमना शाखमां को जे क्रियानो समूह श्राफ तथा चंद्र सूर्यनुं ग्रहण तया संकाति तथा माघ माला इत्यादिकनुंजे प्रतिपादन तेने कुमत कहीए.
____टीकाः-कुगुरु रुत्सूत्रदेशनाकरण प्रवणः सन्मार्गदूषणपरायणो धार्मिक जनकुञो पजवतत्परःसुखलोल तयायतिक्रिया विकलोज़नविप्रलिप्सयाकरक्रियानिष्टोपिवा लानपूजा ख्यातिकामः कुत्सितश्राचार्यः॥ कुग्राहः सिद्धांतबाह्य स्वमति कल्पितस्वान्युपेतासत्पदार्थसमर्थनानुष्टानगोचरो मानसोजि . निवेशः॥ .
..अर्थः-ने कुगुरु जे नुत्सूत्र देशना करवामां तत्पर ने सारा माने दोष पमानवाने तत्पर ने धर्मवंतं लोकने कुछ उपजव करवामां तत्पर ने विषय सुखनी लालचे यतिक्रियाथी भ्रष्ट थलो ने लोकने गंवानी श्चाए दुःकर क्रिया करे तो पण लाज तथा • पूजा तथा पोतानी ख्याती तेमनी श्छावाळो ते कुगुरु कहीए, कुत्सित श्राचार्य कहीए, ने कुमाह ते सिद्धांतनी बाह्य एटले सिकांतथी उलटो पोतानी बुधिए कल्पना कों ने अंगीकार क्यों