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________________ (३३८) . अथ श्री संघपट्टका - अथ के दोषमजिप्रेत्य सिद्धांते रात्रिस्नात्र निवारण मिति दोषप्रदर्शनाय हेतुगर्न विशेषणत्रयं मज्जनस्याह ॥ अर्थः-विधिरहित एटले सिद्धांतमा जे अनुक्रम कह्यो तेथी विपरीत पूर्वे कहेलां विशेषणने सार्थक करवाने रात्रिने विषे स्नात्र करे ने एटलो अर्थ थयो.. विधि रहित ने रात्रि विषे जे प. रमात्मानुं स्नान करवू ते पूर्वे कयु ए प्रकारनुं जे. एटले सिद्धांतने विषे रात्रिमा जिननुं स्नान निवारण कर्यु डे ए हेतु माटे रात्रिने विषे स्नात्र करनारने केम पाप न होय एटलो अर्थ ने. हवे शो दोष अंगिकार करीने सिद्धांतमां रात्रिने विषे स्नात्र करवानुं निवारण कर्यु ले ए दोष देखामवाने हेतुर्जित ए स्नात्रनां प्रण विशेषण कहे . टीकाः-श्ष्टावाप्ति इत्यादिः॥ श्ष्टाया वहनाया मज्जन दर्शनमिषेणागताया अवाप्ति मेलकस्तया तुष्टा निःशंकमत्रा द्य नः सुरतलीला प्रवर्त्यतीतिधिया मुदिता विटा वेश्यापतयः . नटा नाटकालिनयनादिकलोपजीविनः नटाः शस्त्रादिकलाजीविनः नेटका मासादिनियमितवृत्तिग्राहिणः एषां पेटकं समुदाय स्तनाकुलं दुनितं प्रेयस्वीप्राप्त्या सात्विकन्नावेनाकुलीकृत विटादिजना कीर्णत्वात् मज्जनमप्युपचारादाकुलं ॥ .. . अर्थः जे ए स्नात्र के, जे जेमा पोताने वबन्न एवी जे स्त्री तेनी प्राप्ति थाय एटले स्नात्र देखवानुं मिष करीने आवेली जे पोतानी वांबित स्त्री तेनो समागम तेणे करीने राजी ययेला
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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