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________________ -49. अथ श्री संघपट्टक ( ३३९ ) एटले आज शंका रहित आपणी संजोग लीला प्रवर्त्तशे ए. प्रकारनी बुद्धिवते हर्ष पामेला जे विट कहेतां वेश्यापति, तथा नट कतां नाटक यादि कळाव आजीविका करनार पुरुषो तथा जट कतां शास्त्रादिक कळाव श्राजीविका करनारा तथा चेटक कहेतां महिने महिने अथवा वर्षे जे जे पोतानी नियमाये याजी विका बांधी बेनुं ग्रहण करनारा एवा जे पुरुषो तेनो जे समुदाय तेणे करीने दोन पामेलुं एवं स्नात्र बे एटले वांछित स्त्रीनी प्राप्ति थ‍ ते रुप शृंगार रसनो हेतु भूत सात्विक नाम श्रव्यभिचारी एटले शृंगारनी पुष्टीनो कारणयोग तेथे करीने याकुल व्याकुल थयेला जे लोक तेथे करीने व्याप्त थयेलुं बे माटे ए स्नात्र पण उपचारथी श्राकुल थंयुं एम कहेवाय. टीका:- तथा निधुवनविधिनिबद्धदोहदा मोहनविलसित विहिता जिलाषा ः या नरनार्यः पुरुषयोषित स्तासां निकरेण निचमेन संकुलं व्याप्तं ॥ नारीणां हि प्रायोनिधुवनार्थमेव म ज्जनावलोकनद्मना तत्रागमनात् ॥ तथाविधव्याजमंतरेण रात्रौ तत्राप्यागमनासंजवात् ॥ तथाविधव्याजेन चान्यत्र गंतु मशक्तत्वात् ॥ 8 अर्थ:-वळी ए स्नात्र केवुं बे जे जेमणे मैथुन विलास कवानी अभिलाषा बांधी ने एवी स्त्री ने पुरुष तेमनो जे समूह तेथे करीने व्याप्त एवं एटले बहुधा स्त्रीनने मैथुनने अर्थेज स्नात्र जो वाना कपटे करीने त्यां श्रावतुं थाय बे. ए हेतु माटे केमजे ते प्रकारनं कपट कर्या विना रात्रिने विषे त्यां यावतुं संजवतुं नथी. ने
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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