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________________ (१२८) - अथ श्री संघपट्टक - श्रावेश थकी तेने या ते करवा योग्य बे के आते करवा योग्य नथी एवं ज्ञान नथी रहतुं माटे पिता दिकने पण प्रहार करवा मां त्यारे तेने कोइ तेनाथी निवृत्ति पमामवा जाय तोपण निवृति पामे नहि एम था श्रावक लोक पण सारा खोटाना विवेके रहित डे माटे,ते कुमार्गथकी नथी निवृत्ति पामता हवे श्रा काव्यमां घणा विकल्प देखाड्या तेनो अनिप्राय ए जे या काळना श्रावक लो. को अत्यंत जेमांथी निवृत्ति न पमाय एवो पोतानो गरुपी ग्रह तेणे. करीने गळाया एम जणाववाने अर्थे घणा विकदा कह्या बे. .. टीकाः कृत्वा विधाय मूर्ध्नि शिरसिपदं पादश्रुतस्य सिद्धांतोक्तातिक्रमेण निःशंकतया स्वगुरुलिं गिप्रवर्त्तितासन्मार्गपोषणमेव श्रुतमूर्ध्नि पादकरणं श्रुतमूर्ध्नि पादच्यासे च तेषामिदं बीजं ॥ जगवसिद्धांतो हिनैकांतेनैव विहितानुष्टान विधिनिष्टश्त्यादि विवे किनां निःश्रेयसाय नविष्यति किं श्रुतेनेत्यंत लिंगिनिर्यमुक्तं मूलपूर्वपदे ॥ तस्योपदेशस्य सततं तत्सकाशे श्रवणमिति ॥ एतच्चायुक्तं ॥ . - अर्थः-शुं करीने ए प्रकारना थया तो सिद्धांतना मस्तक उपर पग दश्ने केम जे सिद्धांतमा जे कयुं तेनुं निशंकपणे उदसंघन करवू ने पोताना जे लिंग धारी गुरु तेने प्रवर्ताव्यो जे असत् मार्ग तेनुं पोषण कर, एज सिद्धांतने माथे पग दीधो कहेवाय माटे तेमने सिद्धांतने माथे पग .दीधार्नु तो आ बीज ले. जे लगवत्नो सिद्धांत तो एकांतिकपणे कह्यो एवो, जे अनुष्टान विधि तेने विषे जतात्पर्य तेजेनुएवो नथी ए वचनथी भारतीने विवेकीओन मोद
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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