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________________ ( ३२२) अथ श्री संघपट्टक ' रहित आ जगत् थयु डे माटे आशंका करीने कहे जे जे राजा सहित एवं श्रा जगत् डे तेने राजा रहित होय ने शुं एम केम कहो बो तो ते उपर कहे जे जे श्रा लिंगधारीओ उगे डे ए मोटी खेद नरेली वात डे केमजे जो एम न.होय ने पूर्वे कहेला गुण सहित राजा होय तो बळाकारे लोक पासे पोतानी आझा मनावे जे ते केम थाय ? तेमां आ अतिप्राय डे के जेम पूर्वे कह्या एवा गुणवाळा राजा विना ते राजाना देश प्रत्ये शत्रु. तथा चोर इत्यादिक उपव करे ले तेम ा काळमां पण मोटाने अतिशये सहित एवा घणा , जनने अपेक्षा करवा योग्य एवा गणधर आदि पुरुषसिंहनो विरह ले ए हेतु माटे लिंगधारीओ श्रा श्रावक जनने उगे एटले पोताने मनमां श्रावें तेम प्ररुपणा करीने पोताना स्वार्थ साधवानी वात तेमना माथा उपर चमावीने नमावे ले ए प्रकारनो श्रा काव्यनो अर्थ थयो ॥ १६ ॥ टीकाः-अधुना लिंगिनो वैशसं दृष्ट्वापि कदाग्रहात्तत्प्रथित कापथादऽनिवृत्तमानान्मूढान्दिग्मूढत्वादिना विकल्पयन्नाह ॥ अर्थः-हवे लिंगधारीश्रोनी करेली प्रत्यक्ष हिंसा देखीने पण कदाग्रह थकी तेणे प्ररुषण करेलो जे निंदित मार्ग ते थकी निवृत्ति न पामेला एटले ते मार्गे चालता एवा मूढपुरुषोने दिग्मूढपणुं इत्यादिक दोष ले तेन विकल्प करता सता कहे .
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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